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अध्यात्म
विचार
मुल-स एव परमब्रह्म । स एव जिनपुंगवः ॥ स एव परमं तत्वं । स एव परमं तप ॥ १६ ॥ जीतसंग्रह
श०-(सएव परमं तत्व) यही आत्मा परमतत्त्व है (सएव परमं ब्रह्म) यही आत्मा परिब्रह्म हैं (सएवजिन पुंगव) यही अत्मा जिनचंद जिन तीर्थकर त्रैलोक्य अधिपति सबसे श्रेष्ट है (सएव परमंतप) और यही आत्मा परम तप है भावार्थ आत्माका शुद्ध स्वरूप प्रगट होनेपर यही आत्मा परम उत्कृष्ट तत्त्व है यही आत्मा तीर्थकर है यही आत्मा त्रैलोक्यके परम पूज्य है और यही सबसे उत्तमसे उत्सम तत्व है ॥ १६॥
मूल-स एव परमं ज्योति । स एव परमं गुरुः ॥ स एव परमं ध्यानं । स एव परमोत्तमः ॥१७ ||
श-(स एव परमं ज्योतिः) वही आत्मा परम ज्योतिमय लोकालोकके भाषक याने लोकालोकके ज्ञाता है (सएव परमोगुमः) यही आत्मा परम उत्कृष्ट परम गुरु हैं (सएव परमं ध्यान) यही सबसे उत्तमसे उत्तम श्रेष्ट ध्यान है [स एव परमोत्तमः] और यही उत्तम परम पद है भावार्थ यही आत्मा परम ज्योति मय है यही आत्मा त्रैलोक्यके पूज्य और त्रैलोक्यके परमगुरु है यही आत्मा परम ध्यान है यही धिये है और यही आत्मा परममोक्षपद | देने वाला है ॥ १७ ॥ मूल-स एव सर्वकल्याणं । स एव सुख भाजनं ॥ स एव शुद्ध चिद्दरूपं । स एव परमं शिवं ॥१८॥DE
श-(सएव सर्वकल्याण) यही सर्व कल्याण है (स एव सुखभाजनं) यही आत्मा सब सुखका भाजन है
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