Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 90
________________ D अध्यात्मविचार ॥४४॥ जीतसंग्रह ॥ ४४ ॥ तक MINS ایتالیا ایها اهان कष्ट क्रियाका फल प्रायः करके विष और गरलके समानही है चाहे जैसी भाषाके ज्ञाताहो भाषा याने मागधी संस्कृत उई तैलंगी पारसी और इंग्रजी आदि अनेक भाषाके जाननेवाले क्युं नही होवे तैसेंही अनेक सूत्र सिद्धान्तके ज्ञाता क्यु नहि हों लेकिन जबतक आत्मतत्वकी पहिचान नहीं होवे तबतकतो नानाप्रकारकी भाषा और अनेक | तरहके ग्रन्थोके ज्ञान निकामें हैं 'सार लहे विन भार कह्यो श्रुत खर दृष्टांत प्रमाण' फेर कितनेक आत्मज्ञानसें हीन मेरे जैसे वेषधारियो सुगुरु नाम धराके भोली जनताको धूतारे धोलेधके और दिन थके रक्षक नाम धराके ग्रामोग्राम ठगतेहुए फिरतेहै मोजमजा उडाते है वीरके पोठिये साधु हुआखधे भार योग नहीं णि कर्मकी मार दोहा-तनकोयोगी सवही करै । मनसे विरला कोय ॥ जो मनसे योगी हुवै । तो दुःख काहेको होय ॥१॥ गाथा-संयमविन संयमता थापे । पापश्रनग ते दाख्यो । उत्तराध्ययने सरल सभावक । शुद्धप्ररूपकभाख्यो १ योग लही परआश धरतुहैं । यही जगमें हांसीतुं जानै । मैंगुणकुसंचू । गुणतो जावे नासा ॥२॥ योगलहीजडभोगनछाड्यो । युहीजन्मगमायो । वाझक्रियाकरीकायाकिलसें । झुगेजगभरमायो ।। ३ ।। लेकिन मेरेजैसें वेषधारियों परमार्थे शून्यही होते है ऐसे वेषधारियों अपने अंधे भक्तोको कैसे तारोगे? दोहा-जाका गुरुहै अंधरा । चेला खरा निरंध ।। अंधेको अंधा मिल्या । चट्या कालके खंध ॥ ४॥ मेरेजैसे वेषधारियोके जितने दृष्टिरागी अंधे भक्तो होते है वह प्राय करके मतिहीन बोधलेही होते हैं उन्हाको कुछ ज्ञान नहीं होते गुरू तीन तरहके होते हैं पत्थरकी नाव समान काष्टकी नाव समान और पीपलके पते समान OORDAINITRODaiDOIDIODOGram ESSADOR-LOADupta JainEducational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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