Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 91
________________ जीतसंग्रह अध्यात्म-TEE वो घलांको कुछ सत्य असत्य गुरुकी पहिचानही नहि है विचारे बोघले क्या करे कहनेका तात्पर्य यही है कि मेरे विचार जैसे पत्थरकी नाव समान कुगुरुका त्याग करके काष्टकी नाव समान आत्मज्ञानी ध्यानी निस्पृही महात्माके चरणकमलकी सेवा भक्ति करके अपना कल्याण करणा चाहिये लेकिन ज्ञानी महापुरुषकी पहिचान विचारे बालजीवों कैसें कर शके क्योंकि बालजीवों होते हैं वहतो केवल वेष धारण करनेपर साधु मान लेते हैं कहाभी हैं बालक मानेरे बेष मध्यम पुरुष । क्रिया गुण आदरे ॥ १॥ मध्यम पुरुष जो होते हैं वह तो ज्ञान सहित केवल उपरसे क्रियाके आडंबरकोही देखते है किंतु जो उत्तम JE पुरुष होते हैं वह ज्ञान सहित क्रियाको आदर करते हैं क्योंकि व्यवहारमें निश्चयमें स्थिर स्थंभ कहनेको तात्पर्य यही । हैं कि ज्ञानी महापुरुषका और वेषधारी साधुओकी तरह उपरसें क्रियाकाण्डकों तथा आचरणकों नहीं देखना चाहिये उन महापुरुषका हृदय कमल ज्ञानदृष्टिसें या योगचेष्टासें देखना चाहिये. गाथा-आनंदघन चेतन में खेले । देखे लोक तमासा ॥ क्योंकि योगीराजका आचरण उपरसें लोगोंको ढुंग देखलानेके लिये मेरे जैसा असत्य आडंबर लोक देखाउ नही होता इसलिये ऐसे महापुरुष योगीराजके आचरणको अज्ञानी वालजीवों कैसें जान शके क्या जानै मेरे आनंद की गति दुनिया दीवानी है मायामें मस्तानी क्या योगीराजकी गति दुनिया दिवानी जान शकती है नही २ विचारे dबालजीवोतो केवल उपर २ से पडिलेहना प्रतिक्रमणादिक वाह्य क्रियामें ही धर्म मानके वाडायंधीमें अर्थात् गच्छ MANOOPERepela 1 . in Education For Personal & Private Use Only 4 ndiainelibrary.org

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