Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 82
________________ सवाल विचार 1180 11 Jain Education Me दोहा -जाच्यां सुर तरूदेत सुख । चित्या चिंतामणि रत्न ॥ विनजाच्यां विनचितव्यां । धर्म सकल सुख देत | १| अथ मुनि विशेषः - हे मुनि अपने जिस दिन से सर्व संसारके भोगविलास अर्थात् विषय सुखको छोड़के | संयम लिया हैं उसदिन आजदिनतक पठण पाउण में और ध्यान समाधिमें और ध्यानादिक कार्यमें कितना समय गया है और खाने पीने माल ताल उडानेमें और खतपत्र लिखनेमे वांचनेमे तैसेंमी मान बडाई निंदा प्रमाद और स्त्रियोंके साये गप्पा उडानेमें कितना फाल गमाया है सो कुछ विचार है या नही साखी --सुखीया सब साधु । खावै अरु सुये ॥ दुखिया सब संसार । जागे अरु रोवे ॥ १ ॥ हे सुनि अब तेने शिर मुंडाय के संसारके सब सुख याग दिये हैं अब तुं पुद्गलानंदी पीछा क्यों बन गया हैं हे महाभाग्य जो संयम हैं वह इस लोक परलोकमे अर्थात् दोनोही लोकमें महासुख देनेवाला है जरा ज्ञानरूपी नेत्रकों खोलके देख ज्ञानीने क्या फुरमाया है दशवैकालिकसूत्र में गाथा - भोग तजी जोग आदरेजी । तेनी हुं बलीहारीरे ॥ मुनिवर । धन धन ते अणगाररे ॥ १ ॥ क्रियाआतापना आकरीजी । कोमल न करे देह || रागद्वेष तजी पाडवाजी । जिम सुख पामे अच्छेद २ हे मुनि तेने स्त्री धन परिवार ईर्षा द्वेष मान माया लोभ कपट शोक चिंता भय तृष्णा शत्रुता और परनिंदा आदि सबका त्याग करके और सब दुःखोसें मुक्त होकर परम आनंद भोग रहा है तब फेर महादुखदाई ऐसें संसारिक याने विषयभोगमें तैसेही गच्छ कदाग्रहमें फसकर हे महाभाग्य नहाक अधोगतिमें जानेके लिये क्यों प्रयास For Personal & Private Use Only जीतसंग्रह ।। ४० ।। www.jainlibrary.org

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