Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 57
________________ अध्यात्मविचार ॥२८॥ जीतसंग्रह ॥ २८ ॥ गाथा-आत्मज्ञान समुझे विना । कोटि कथे कोइ ज्ञान ।। तारेतिमिर भागे नही । जबलग ऊगे न भान ॥१॥ भावार्थ:-आत्मज्ञान समुझे बिना या आत्मज्ञानका प्रकाश होये विना तबतक कोटानकोटी ग्रंथ पढनेपर याने मागधी संस्कृत अंग्रेजी तिलंगी उडदू पारसी इतिहास खगोल भूगोल गणित योग नारीकी देव आदिके थोकडे तर्फ शास्त्र कोश काव्य और पुरूषकी बहोतर कला आदि सब सीख लेवे लेकिन अज्ञानरूपी तिमिर उक्तविद्याओसें कभी दूर होनेवाला नहीं है, जैसे तारोके तेजसे तिमिर कभी दूर नही होवे सूर्य उदय हुये बिना जैसे आत्मज्ञानरूपी सूर्यके उदय विना.मिथ्यात्वरूपी तिमिर दूर नहीं हो शक्ता है और मिथ्यात्वरूपी तिमिर दूर नहीं होवै तबतक ज्ञानरूपी मर्यका प्रकाश हृदय कमलमें कभी नहि होवे गाथा-अवर ज्ञान सो ज्ञानडी । ब्रह्मज्ञान सो ज्ञान ॥ जैसा गोला तोपका । मार करे मेदान ॥शा भावार्थ:-आत्मअनुभव ज्ञानविना जो ज्ञान है वह ज्ञान एक बंदूक के समानही है और जो आत्म ब्रह्मज्ञान है वहतो एकतो पके समान ही है क्योंकि आत्मज्ञानरूपी तोप कर्मरूपी शत्रुकों एक समयमें गिराय देनेवाली है ।। गाथा-मनदारू तिन नाली करी । ध्याना नल सिलगय || कर्मकटक भेदन घणी । गोला ज्ञान चलाय ॥१॥ भारी कहुंतो कुछ नही । हलका कह्या न जाय ।। सद्गुरुकी कृपा विना । कोण कहै समुझाय ॥२॥ भावार्थ:-कभी आत्माको भारीकहुंतो कुछ वणे नहीं तैसेंही कछु हलका कहुंनोभी वणे नही तातें सुद्गुरुकी कृपाविना और आत्माकै अनुभवविना आत्माका यथार्थ स्वरूपको न कह शके ॥२॥ اللجان كانكالات الاحتلالوكالة الاختند الهاتفيا فانا لا اله الا لمسلسل السلطال عالميا لفنانات Jan Educationa l For Personal & Private Use Only www.elbord

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