Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 58
________________ अध्यात्म विचार भावार्थ:--तप जप संयम और ध्यान सब जिंदगीतक क्युं न करले परंतु आत्मज्ञान बिना कभी कल्याण होने वाला नही हैं क्योंकि शुद्ध आत्म उपयोगविना सर्व करणी पुण्य आश्रवरूपही है ॥ १॥ गाथा--काम क्रोध मद मोहकी। जबलग घटमें खान ॥ कहाभूर्ख कहा पंडिता । दोनों एक समान ॥ १ ॥ भावार्थ:- जब तक काम क्रोध मद और लोभको घटमें खान रही हुइ है तबतक क्यातो सूखे क्या पंडित दोनों एक समानही है ॥ १ ॥ गाथा - मुख से जपे राम गुण । कपट हृदय नहि जाय ॥ आपतो समस्या नही । ओरां को समझाय ॥१॥ भावार्थ:-- उपरसे लोक दिखाउं मूहसेतो रामनाम जपता हैं लोक सब देखते हैं कि भारी भक्तराज है | परंतु अपने हृदयसें कपट नही छोड़ता जब खुद आपही नहि समस्या तब दूसरों को कैसे समझाया बुगलाभक्त | १| दोहा - ज्ञानीध्यानी बहुत मिलै । कवि पंडित अनेक । काम दमे जन वश करे | वह लाखो में एक ॥१॥ भावार्थ:- बडी बडी ज्ञान ध्यानकी वातों करनेवाले और बडे २ कवि कविता बनानेवाले तथा संस्कृत भाषा में बडे प्रवीण आदि बहुत ही देखनेमें आये लेकिन इन्द्रियोंको जीतनेवाला कोइ लाखो में एकआधाही मिलेंगे || १ || गाथा - आत्मस्वरूप समझ्यो नही । रखो मायासें मोह । पारस लग पहुंनो नही । रह्यो लोकको लोह ||१|| भावार्थ:- जिसने आत्मस्वरूप जाने नही और अष्ट प्रहर केवल भाया में ही लग रहे है ऐसे पुरुषकों सद्गुरूपी पारसका स्पर्श विना कंचन कैसे हो शकै ? ॥ १ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only 毛毛毛毛毛號。 जीतसंग्रह Wainelibrary.org

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