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अध्यात्म
विचार
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भावार्थ:- परद्रव्य और परस्त्रीमें ममत्वभाव जो रखना यही संतारमें उत्पन्न होनेका बीज हैं जिस्मे जन्म जरा और मृत्युरूपी नाना प्रकार के फल आरहे है इसलिये महात्मा पुरुषों कहते है कि हे मित्र विषयसुखकों किंपाकके फूल समान समजकर विषयसुखसें और द्रव्यसे अलगही रहो ॥ १ ॥ अथ पैसोंके विषे, कवित— पैसा बिनमाता पुतकोंकपूतक है, पैसाबिनयापक है बेटा दुखदाई है । पैसाविन भाइकहैकिसिका भाईहै, पैसा बिन जो मंगछोड जावे है || पैसाविनसासूक है किसकाजवाईहैं, पैसाविनपाडोसीक है
यह गमार है, आजके जमाने में पैसों की बडाइ ॥ १ ॥ माताकहॅमेरा पूनसपूता । वेन हैमेरे भइया | घरकी जोरुयुंक है । सबसेबडाम्पैया ||२|| अथ चोथी एकत्व भावना
दोहा - आप अकेलो अवतरे । मरेअकेलोआप | कोयन अपनेजीवको । सगोसहायनवाप ॥ १ ॥ भावार्थः - भव्यजीवोंको ऐसा विचारना चाहिये कि मैं अकेला इस संसारमें आया हूं और अकेलाही जाउंगा मेरा सम्बन्धि संसार में कोइभी नही है मेरा सम्बन्धी एक केवली भाषित सत्य धर्मही है और मेरा स्वरूप सब जगत् से निराला और सिद्धके समान है अनन्त ज्ञान अनन्त दर्शन अनन्त चारित्रमय अरूपी है और पांच द्रव्योसें मेरा स्वरूप भिन्न है मैं सदैव एक स्वरूप हुं और नित्य हुं सत्यस्वरूपमय हुं सदा आनंदमय हुं एकेलाही आया हुं अकेलाही जानेवाला हुं इस संसारमे कोइ भी पदार्थ मेरा नही है यहतो अज्ञानता से अजसिंहकी तरह मेरी अनादिकाल से कर्मसंयोगे भूल हो गईथी इसलिये में अनादि कालसें दुःख भोग रहा हुं अब सद्गुरुकी कृपासें
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जीतसंग्रह
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