Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 76
________________ www... इसअशुचीरूपी पीजरामें कोइभी अच्छी वस्तु रमणीय और बहुत खसवेदार कोइभी दृष्टिगोचर नहीं आती अध्यात्म-IBE TET जीतसंग्रह विचार JE क्योंकि सदानव तथा द्वादश दाशेसे महादुर्गन्धी निकल रही है इस शरीररूपी पीजरेमें अच्छेसे अच्छी केसर JET ॥३७॥ कस्तूरी दृध दधी कोइभी सुगंधीदार पदार्थ डालकर देखलो एकपलभरमे वमन होनेपर महादुर्गधहोके निकलेगे ऐसे गंधे शरीरपै मोहित होकर नानायकारसे स्नान मंजन अशर फूलेल आदि लगाके हे मढ क्या सुख होता है | अष्टप्रहर इस वपुकी क्यों गुलामी उठा रहा है तेरेको शरम नहीं आती अहा अज्ञान आनंदघन | Je हीरो जनछंडी नरमोह्यो माया कायाकंकेरी हे भव्य! ईस शरीरकुं अशुचिका कोथला जोनके मोह नहि करना ३६ चाहिये यह शरीररूपी पीजरा केवल भाडेका घर हैं अपना घरना नहीं है अपना घरतो अनंतज्ञानमयी है ईस शरीरकों जो ज्ञानीने रत्नचिंतामणिकी ओपमादीनी है वह केवल आत्मकल्याणके लियेही दी हुई है इसलिये इस शरीरद्वारा ज्ञान ध्यान और चारित्रकी आराधना करके अपना कल्याण करना चाहिये परन्तु एक समपमात्रभी प्रमादमें खोना न चाहिये शरीरद्वारा ज्ञान ध्यान करना यही शरीर पानेकासारयही है. गाथा-यतनविनकहोकिणे । साचासुखनिपजायारे ॥ अवसरपायेनचूक । चिदानंदसदगुमएमदर्शायारे ॥१॥ दोहा-दीपे चाम चादर मढी । हाडपीजरो देह । भीतर या शरीरमें । दीसे नहीं घनघेह ॥१॥ भावार्थ:-हाडपिंजरवाली यह काया उपर चामरूपी चदरसे मढीहुई है इस लिये सुंदर खुबसूरत देखलाती है जैसे दिवाल कलीसे सोभित करीहुइ चमक रही है लेकिन जो ज्ञानदृष्टिसे देखा जावेतो दिवालके अंदर क्या सार र قناتنا متعوا بان الاردن DAMOD : توافقنا في JainEducation a l For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org,

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