Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 73
________________ अध्यात्मविचार ॥ ३६ ॥ अज्ञान और मिथ्यात्वों दूर करके कर्मरहित अशरीरी शुद्ध परमात्मरूप सिंहकी तरह होउंगा ऐसी एकत्व भावना नमीराजाने चित्तमें धारणकरके सर्वराजऋद्धिकों छोड़के संयम ग्रहणकरके और अकेला विचरके अपना कल्याणकिया गाथा - बेपणपटपटथायरे । चूडिनीपरेंविचरूंअकेलो || एमबुवानमीरायरे । ममकरममतारे समताआदरो || १ | ज्ञान ध्यान चारित्रनेरे, जो दृढ करवा चाय तो एकाको विहरतारे, जिनकल्पा दिसायरे ॥ प्राणी सकल भावनाभाव, शिवमार्ग साधन दावरे प्रा० ||२|| । Jain Educationilionl साधुभणी गृहवासनीरे । छोटी ममता जेह || तोपणगच्छवासीनोपुंछडोरे । छूटोन हितेहरेप्राणी ॥३॥ वनमृगनीपरेतेहधीरे । छांडि सकलप्रतिबन्ध || एकाकाअनादीनोरे । किणधीतुझप्रतिबन्धरे प्रा० ॥४॥ शत्रु मित्रता सर्वथी । पामीवार अनन्त || कौन शयण दुश्मणकि स्यारे । काले सहुनो अंतरे प्रा० ||५| बांधे कर्म जीव एकलोरे। भोगवे तेपिण एक || किन उपर कि बातनीरे। रागद्वेषनीटेकरे प्रा० || ६ || जोत्ति एकपणुं ग्रहरे । छांडी सकल परभाव । शुद्धात्म ज्ञानादि शरे । एक स्वरूपे भावरे प्रा० ||७|| आयो पण तु एकलोरे। जासी पण तुं एक ॥। तो ए सर्व कुटुम्बधीरे । प्रीतिकैसी अविवेकरे प्रा० ||८|| परसंयोगी बन्धछेरे । परवियोगधी मोक्ष | तेणे तजी पर मेलावडोरे । एकपणो निजपोपरे प्रा० ||९|| ज्ञायक रूप हुं एकछुरे । ज्ञानादिक गुणवंत || बाहिर जोग सहुअवरछेरे । पाम्योबारअनन्तरे प्रा० ॥ १० ॥ इसलिये यह कुटुम्ब परिवार आदि कोइ भी मैरा सम्बन्धी नही है For Personal & Private Use Only जीतसंग्रह ॥ ३६ ॥ www.jainelibrary.org

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