Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 44
________________ अध्यात्म विचार प्रत्यक्ष सद्गुरु योगसें । आश्रव ते रोकाय ॥ आश्रव रोके बिन जीवने । बंधण वमगो थाय ॥ ११ ॥ अज्ञान मत आग्रह तजी । वर्ते सद्गुरु लक्ष | समकित तेहने भाखियो लही कारण प्रत्यक्ष ॥ १२॥ जे सद्गुरु उपदेशथी । पाम्या केवलज्ञान || गुरु रहे छद्मस्थपणे । विनय करे भगवान || १३ || अथ कदाग्रहीविषे दोहा-नहि कषाय उपशांतता । नही अंतर वैराग्य । सरलपणो न मध्यस्थता । ते पक्षपाती दुर्भाग्य | १४ | आत्मार्थी मुनिनालक्षण-आत्मज्ञान तहां मुनिपणा । तेसाचासद् गुरुहोय ॥ बाकी कुगुरुकल्पना । आत्मार्थी न ही कोय ॥ १५ ॥ गाथा - आत्मज्ञानी श्रमण कहावै। बीजातो द्रव्यलिंगीरे ॥ वस्तुगते वस्तुप्रकाशे । आनंदघन मत संगीरे ॥ १ ॥ दोहा - एमविचारी चित्रामें । शोधे सद्गुरु योग || काम एक आत्मा भगो । बीजो नही मन रोग || १६ | जेहां होवे शुद्ध विचारणा । तेहां प्रगटे निज ज्ञान ॥ रागद्वेष को क्षय करी । पावै पद निर्वान ||१७|| सद्गुरुनी किरपाथकी । लह्यो अपूर्व ज्ञान ॥ निजपद निजमें लयो । दुर हुआ अज्ञान || १८ | रागद्वेष अज्ञानता । यही कर्मकीग्रंथी । होवे निवृत तेहथी । तेहीज मोक्षनो पंथी ॥ १९ ॥ केवल निज स्वरूपनो । अखंड रहे जे ध्यान || कहिये केवलज्ञानते । देह छतां निर्वाण ||२०|| क्याधरूं सद्गुरु चरणमें ! आत्मज्ञानमूं हीन ॥ तोतो सद्गुरु कीरपा करी । अर्पण कियो मुझनाण ॥ २१ ॥ आत्मभ्रांति सम रोग नही । सद्गुरुसमो नहि वैद्य ॥ गुरु आज्ञासमो धर्मनही औषधज्ञानावनिर्बंध ||२२|| गच्छमत्तनी जो कल्पना । ते नही शुद्ध व्यवहार ॥ ज्ञान नही निजरूपनो । डूबे कालीधार ||२३|| Jain Education International For Personal & Private Use Only जीतसंग्रह finelibrary.org

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