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अध्यात्म
जीतसंग्रह
विचार
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SDMRIDDARADलतपमान
झूठे सुखके कारणे । क्यों राचै जगमांहि ॥ दोय दिनारे कारणे । क्युं बांधे कर्म यांहि ॥ ८ ॥ विषय सुखकों सुख कहैं। कहांलग कहुं तुझ भूल ॥ आंख छतां आंधा हुआ। जाणपणामे धूल ॥९॥ किस केहे निसचिंत तूं । शिरपें घूमे काल ॥ बांध सकेतो बांध लै । पाणि पहली पाल ॥१०॥ नहि विचार तेने किया। करनाथा क्या काज ॥ उदय होयगो कर्म फल । तव आवेगी लाज ॥११।। खेरहुआ सो होगया । अबतो चेत गमार || बिना विचारे तुमने किया । जिसकी सह ले मार ॥१२॥ जोतुं चाहै अमर पद । तोपुदल राग निवार ॥ निंदा स्तुति रिपु मित्रने । एकहि दृष्टि निहार ॥१३॥ आत्मज्ञान अनुभव विना, हृदय मर्म नहि जात ।। तिमिर अज्ञान नासे नही, लाख कथे कोई बात ॥१४॥ अपने अपने गुण विषे । स्थिर रहे सहु द्रव्य ॥ तुंही अपने गुण विषे । स्थिर रहै मनलाय ॥१५॥ जो तुं चाहै अमरपद । तो खोजो घटमांहि । बाहिर भटकतना मिलै । जेवसे घटमांहि ॥१६॥
धीरज गुण धारण कियां । सबही दुःख मिटजाय । जैसे ठंडे लोहसें । ताता लोह कटाय ॥१७॥ अनुभव विचार-कुकस विषय बिकार रस । मत भख मूढ गिंवार ।। अनुभव रस तुंचाख लै-गुरुगम करी निरधार ॥१८॥
किये पाठ अनुभव विना । मिटे नाभ्यंतर पाप । बाहिर शीशी धोयके । करी चाहै तुं साफ ॥१९॥ पाठ कियांसे एक गुण । अनुभव कियां हजार ।। तातें मनकूरोक के । अब क्युं न करै विचार ॥२०॥ अल्पभार पाषाण को। जिम लागे जलमांय । तिम अनुभव परकासते । करम बंधेला नाय ॥२१॥
المين
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