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JE जीतसंग्रह
अध्यात्मविचार ॥२३॥
आत्मदृष्टि स्थिर करी । अनुभव लहै जग कोय ॥ इन्द्रनरेन्द्र नागेन्द्र के तासुख सम नहिहोय ॥२२।। अनुभव प्रभुजी मिले । अनुभव सुखका मुल॥अनुभव चिंतामणि छांडके । मन भटके कहुंभूल २३ ज्ञानविना जग जीवडा । फिरे जिम जंगलकोरोझ ॥ मिथ्या युही पञ्चमरे । करे न घटमें खोज ॥१४॥ संसारीकों देख ले । सुख नहि है लब लेश ॥ अवतो पीछा छोड दै। कर्म न लागै लेश ॥२५।। ठाठ देवके भूल मत । यह पुद्गल पर्याय ।। क्षणमें नष्ट होत है। खाली क्यों फूलाय ॥२६॥ लुट तहै ज्ञानादि धन । ठग सरिसो संसार ॥ मीठा वचन उचारके । पटके नरकें द्वार ॥२७॥ कैसो भूत तो कोलगो । क्यु नहि करे विचार ॥ नही माने तो देखले । मतलब को संसार ॥२८॥ काया उपर ताहेरो। सबसे अधिकोप्यार । वहतो सबसे पहेली । दगो देगी निरधार ॥२९॥ चर्म चक्षु अति भली । जग चक्षु मनोहारि ॥ ज्ञान चक्षु विन जग जीवडा । रूले सब संसार ॥३०॥ सुरपति सब सेवा करे । रायराणां नरनार | कालचक्र माथे भमे । चेते क्युं न गमार ॥३१॥ देखत नर अंधा हुआ। मोह लिया सब घेर । भण्या गण्या मूर्व वली । काल ले गया सबतेर ॥३२॥ रात दिवस निज नारसुं । तुं रमतो दिन रात । जे जोइये ते पुरतो गरज सर्या नहि आत ॥३३॥ ब्रह्मा नारायण ईश्वर । इन्द्र चन्द्र नर क्रोड ॥ ललना वशते बापडा । रह्या वे करजोड ॥३४॥ नारीवदन सोहामणो । पण वाद्य न अवतार ॥ जे नर तेहने वश पड्या । लुट्या ते घरबार ॥३५॥
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