Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 43
________________ अध्यात्म विचार ॥ २१ ॥ Jain Education मुखसे कथे ज्ञान सहु । छांडे न अशुद्ध आचार ।। ते शुष्कपांठी बापडा । रूले सर्व संसार ||२४|| अथ इन्द्रदमनविषे - देह छतां देहातीत । वरते सद्गुरु जेह ।। तेज्ञानीनां चरणमां । धोक देहु नित्य मेह ||२५|| अथ इन्द्रियदमनविषे भाषा - हे भव्य ! जो तुमकों मोक्षसुखकी पूर्ण इच्छा हो तो प्रथमसेंही अध्यात्मज्ञान और अध्यात्मध्यानका आलम्बन लेकर इन्द्रियोका दमन करो अर्थात् सर्वइन्द्रियोंके विषयको अपने वशमें रखके आत्मअनुभव करो संसाररूरूपी सागरसें पार होनेकेलिये उत्तमसें उत्तम और अच्छेसे अच्छे यही साधन हैं तात्पर्य यहीं हैं इन्द्रियोर्के विषयकों जीतके जो आत्म स्वरूपमें रहता है यही मोक्षकेलिये उत्तम साधन हैं परन्तु जबतक मन इन्द्रियोका दमन नही कियाजाये यानें मन इन्द्रियो वशमें नही हुये तबतक चाहे जितने जप तप करा चाहे जितने सूत्रसिद्धान्त पढो पढावो लेकिन संसाररूपी बंधनसे कभी नही छूट शकते मन इन्द्रियोंको दमन करनेके लिये स्वल्प आहार सदगुaat सत्संग और गुरुमुखसें अध्यात्मग्रंथोका पठन पाठन श्रद्धा पूर्वक होना चाहिये इसतरहसें सत्संग अभ्यास करनेपर अवश्यही आत्मतत्वका बोध होता है और आत्मतत्वका बोध होनेपर मन इन्द्रियोंको विषय आपसें आप हो जाते है विष शांत होनेपर सर्व जगत् के आत्मस्वरूपका दर्शन आपसे आप होजाता है आत्मस्वरूपका प्रकाश होनेपर सर्व जगत्की अस्थिरता आपसे आप दृष्टिगोचर होजाती हैं तब चित्तवृत्ति आपसे आप शान्त होजाती है और चिभवृत्ति शान्त होनेपर मन आत्मवृत्तिमें आपसे आप लय होजाता है जब मन For Personal & Private Use Only जीतसंग्रह ॥ २१ ॥ winelibrary.org

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