Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ अध्यात्मविचार जीतसंग्रह J कहेसो सवही झूठी ॥४॥ परपरिणतिअपनी करमाने क्रियागर्वे गहलो उनकों जैनी क्यूं कहिये सोमूर्खमांहि पहलो | ॥५॥ ज्ञानसकलनय साधनसाधो क्रियाज्ञानकी दासी,क्रियाकरत धरत है ममता,आईगलेमें फासी ॥६॥ ज्ञानपछे किरीयाकही, दशवैकालिकवाणी ज्ञानगुणेकरी मुनिकह्यो, उत्तराध्ययन प्रमाण ॥७॥ अधिकोसर्वपातकथकी,अज्ञानी न जाणे चोज आत्मस्वरूपसमझ्याविना, जेमफिरेजंगलनारोझ ॥८॥ क्रियानयजेवालछै ज्ञाननयउजमाल मुनीनेसेववायोग्यते बोलेउपदेशमाल ॥२॥ देहनामहेलनीसारिखो मुझविणक्रियाधंध तीक्ष्णताजेज्ञाननी तेहजचरणअबंध ॥१०॥ अध्यात्मविनुजे क्रिया तेतनुमलतोले ममकारादियोगथी ज्ञानीएमयोले ॥११॥ इतियशोविजयजीउपाध्यायवचनात् दोहा-बाहिरक्रिया कर्म है। अंतरक्रिया धर्म ॥ सुद्धजाणोसो आदरो। यही धर्मका मर्म ॥१॥ परस्वभावे बंध है। निजस्वभावे मोक्ष ॥यहीजआत्म धर्म है। जाणेकोइक दक्ष ॥२।। जडक्रियासे अतीत है । आत्मधर्मस्वरूप ।।। क्रियाकांडमें पचमरे। लहनआत्मस्वरूप ॥३॥ देहादिकतेंभिन्न है। चैतन्यरूपअरूप ।। अनुभवविनजाणेनही । | लाखकथेकोइस्वरूप । ४॥ योगक्रियाहै जडतणी । चैतन्यजडत्तात्तीत्त । मूरखनरसमुझे नही कैसेंसुखलहै मीत्त ॥५॥ सिद्धस्वरूपीआतमा । जाने ध्यानी राय ॥ यहीज मुक्तिमार्ग है। सदगुरूदियो बताय ॥६॥ मिटे उपाधी मोहकी। प्रगटे आत्म भान ॥ ज्ञानसहित क्रिया कही। चिदानंद भगवान ॥७॥ शुद्ध आलंबन लही। तजे अशुद्धता जेह ॥ आत्मअनुभवते लहैं । करी अज्ञानको छेह ॥८॥ अंतरदृष्टीज्ञानसे देखो आत्मराम ॥ जड पुद्गलसें भिन्न हैं। यहीज साचो नाम ॥९॥ विरला जाने तत्वकों। विरला तत्त्व सुनंत ॥ विरना जाणे आत्मा । विरला संत महंत ॥१०॥ in Ede For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122