Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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जबकि आचार्य मलयगिरि स्वयं मानते हैं कि मूल पाठ में समग्र आचारांग के 18 हजार पद माने गए हैं। परन्तु वे उसका समर्थन इसलिए नहीं कर पा रहे हैं कि नियुक्तिकार इससे सहमत नहीं है । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने अपनी बुद्धि एवं चिन्तन स्वातन्त्र्य को भी खो दिया ।
हम यह नहीं समझ पाए कि प्रस्तुत पाठ में अर्थ - वैचित्र्य क्या है और गुरु-परम्परा क्या है ? नन्दी सूत्र में सूत्रकृतांग के सम्बन्ध में भी ऐसा ही पाठ मिलता है कि “दूसरे अंग (सूत्रकृतांग सूत्र) के दो श्रुतस्कन्ध, 23 अध्ययन, 33 उद्देशनकाल, 33 समुद्देशन काल और 36 हजार पद हैं। आचारांग सूत्र के जैसा वर्णन होने पर भी टीकाकार ने प्रस्तुत आगम के दोनों श्रुतस्कन्धों के 36 हजार पद माने हैं। इससे स्पष्ट होता है कि टीकाकारों ने 'अपनी बुद्धि से बिना सोचे-समझे ही निर्युक्ति का अनुकरण मात्र किया है। अतः यह प्रामाणिक नहीं माना जा सकता और जब मूल पाठ सामने हो तब निर्युक्ति किसी भी तरह प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती। क्योंकि मूल पाठ स्वतः मर्युक्त एवं टीका आदि परतः प्रमाण हैं । अतः इससे यही सिद्ध होता है कि समग्र आचारांग ने ही 18 हजार पद हैं 1
आचारांग की भाषा
भाषा ग्रंथ का प्राण है। किसी भी ग्रंथ के आन्तरिक एवं बाह्य परिचय को प्राप्त करने के लिए भाषा एक महत्त्वपूर्ण साधन है। उससे ग्रन्थ का यथार्थ सामने आ जाता है और उसके आधार पर किया गया निर्णय अधिक प्रामाणिक एवं संतोषप्रद होता हैं ।
• जैनागमों में यह स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि तीर्थंकर अर्द्धमागधी भाषा में उपदेश देते हैं±। केवल तीर्थंकर ही नहीं, प्रत्युत देव एवं आर्य पुरुष भी अर्द्धमागधी भाषा में बोलते हैं । भगवती एवं प्रज्ञापना सूत्र में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि
1. बिइए अंगे दो सुयखंधा, तेवीसं अज्झयणा, तित्तीसं उद्देसणकाला, तित्तीसं समुद्देसणकाला, छत्तीसं पयसहस्साणि
पयग्गेणं ।
- नन्दी सूत्र, द्वादशांगी अधिकार
- समवायांग सूत्र, 34 - औपपातिक सूत्र ।
2. भगवं य णं अद्धमागहीए भासा धम्ममाइक्खर । अद्धमागहीए भासाए भासइ अरिहा धम्मं परिकहेइ ।