Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 03
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ चारुवेस 1178 - अमिधानराजेन्द्रः - भाग 3 चितामणि चारुवेस त्रि० (चारुवेष)। चारुर्वेषो नेपथ्यं सत्प्रज्ञा वा यस्य सः। जी०३ | चिआग पुं०(त्याग)। संयतेभ्यो वस्त्रादिदाने आव०४ अ०। प्रति० / मनोहरनेपथ्ये, जं०१ वक्ष०। चिइ स्त्री० (चिति)। 'चिञ' चयने इत्यस्य स्त्रियां क्तिम् / कुशलकर्मण चारोवग पुं० (चारोपग)। चारयक्ते ज्योतिष्के, सू० प्र०१६ पाहु०। उपचयकरणे, प्रव०२ द्वार। कारणे कार्योपचाराद्रजोह-रणाथुपधिसत्तो, चारोववण्णग पुं० (चारोपपन्नक)। चारो मण्डलगत्या परिभमणं, चीयतेऽसाविति वा व्यत्पत्तेः। आव०३ अ०। इष्टकादिचये, उत्त०६ अ०। तमुपपन्नाश्चारोपपन्नाः / चारमाश्रितवत्सु ज्योतिष्केषु, जी०३ प्रति०।। चिइकम्म (ण) न (चितिकर्मन्)। कृतिकर्मणि वन्दनके, आव०३ अ०। ज०। स्था०। चितिकर्मापि द्विधैव-द्रव्यतो, भावतश्च / द्रव्यतस्तापसादिलिङ्गग्रहकर्म, चालण न० (चालन)। स्थानात्स्थानान्तरनयने, ज्ञा०१ श्रु०३ अ०। अनुपयुक्तसम्यग्दृष्ट रजोहरणादिकर्मच, भावतः सम्यग्दृष्ट्युपयुक्तरजोहचालणा स्त्री० (चालना)। गोचरमर्द्धगोचरं वा दूषणं चाल्यते आक्षिप्यते रणाद्युपधिक्रियेति। (अत्र क्षुल्लकदृष्टान्तः 'किइकम्म' शब्देऽत्रैव भागे यया वचनपद्धत्या सा चालना / बृ०१ उ०। सूत्रस्यार्थस्य वाऽनुपत्त्युद् 507 पृष्ठे उक्तः) भावने, एषैव चालनाऽऽवश्यके सामायिकव्याख्याऽबसरे स्वस्थाने चिइच्छा स्त्री० (चिकित्सा)। "स्वरादनतो वा"||८४२४०॥ इत्यनउः विस्तरवती द्रष्टव्या। अनु० / स्था०। विशे० / अधिकृतानुपपत्तिचोद पर्युदासान्न ह्रस्वः / प्रा०४ पाद / “हस्वात् थ्य-श्च-त्स-प्सामनायाम, यया अस्त्विति प्रार्थना न युज्यते, तन्मात्रादिष्टासिद्धेः / ल०। निश्चले" ।।२।२१।इतित्सभागस्य छः / रोगप्रतिकारे, प्रा०२ पाद। चालणी स्त्री० (चालनी) / (चालनी) तितऔ, आ०क० / आ०म० / चिइवंदणास्त्री० (चैत्यवन्दना)। पूजापूरःसरमहविम्बवन्दने, पञ्चा०१ विशे०। विव०।०। चालणीपडि वक्ख न० (चालनीप्रतिपक्ष) / चालनीप्रतिपक्षभूते चिउर पुं० (चिकुर)। पीतरामद्रव्यविशेषे, जं०१०१ वक्ष० / आ०म० वंशदलनिर्मापिते तापसभाजने, ततो हि विन्दुमात्रमपि न प्रस्रवति / प्रज्ञा० / रा०। गन्धद्रव्यविशेष, रा०। प्रज्ञा० / 'चि' इत्यव्यक्तं शब्द उक्तं च-"तावसखउरकढिणयं, चालणिपडिवक्ख न सवई दव्वं पि।।" कुरति कुर-कः। केशे, वृक्षभेदे, पर्वत, सरीसृपे, चपले, तरले, चञ्चले च। त्रि०। वाच०। आ०म०प्र०। चालित्तए अव्य० (चालयितुम्)। भङ्गकान्तरं कर्तुमित्यर्थे, उपा०२ अ०। चिउरंगराग पुं० (चिकुराङ्गराग)। चिकुरसंयोगनिमित्ते वस्त्रादौ रागे, रा०। आ०म०। चालेमाण त्रि० (चालयत्)। शरीरस्य मध्यभागे संचरति, जी०३ प्रति०। चिउरबंध पुं० (चिकुरबन्ध)। केशबन्धपरिज्ञानलक्षणे स्त्रीकलाभेदे, चाव पुं० (चाप)। धनुषि, औ०। आ० म० / जं० / उपा० जी० / भ०। कल्प०७ क्षण। ज्ञा० / प्रश्न। चिउरराग पुं० (चिकुरराग)। पीतद्रव्यविशेषनिष्पादित वस्त्रादौ रागे, चावपाणि त्रि० (चापपाणि)। चापं पाणी येषां ते चापपाणयः / धनुर्हस्तेषु, प्रज्ञा०१७ पद। जी०३ प्रति० / रा०। चिंचइओ देशी (मणिडते), चलिते, दे० ना०३ वर्ग। चावल्ल न० (चापल्य)। आत्मपरिणतीनां स्वस्वकार्याकरणे परभावो चिंचास्त्री० (चिञ्चा)। अम्लिकायाम्, बृ०१ उ० / व्याल०प्र०। पं०व०। न्मुखप्रवर्त्तमरूपे अस्थैर्ये, अष्ट०३ अष्ट०। चिंतग पुं० (चिन्तक)। अप्रमादेन ध्यातरि, आव०४ अ०। चावाली स्त्री० (चावाला)। स्वनामख्याते ग्रामे, सा चोत्तरदक्षिण-भेदाद् | चिंतण न० (चिन्तन)। अनुस्मरणे, पर्यालोचने, आव०४ अ० / चेतसि द्विधा-“सामी दाहिणचावालीओ उत्तरचावालि वचति"। आ० म० द्वि०॥ स्मरणे, परिभावने, उत्त०३२ अ०। आ० चू० / आ० क०। चिंतणिया स्त्री० (चिन्तनिका) अनुप्रेक्षायाम्, स्था०५ ठा०३ उ०। चाविअ त्रि० (च्यावित)। परिभ्रसिते, अनु०। चिंतयंत त्रि० (चिन्तयत्) / स्मरति, संथा० / मन्यमाने, सूत्र०१ चामेडी स्त्री० (चापेटी)। विद्याभेदे, ययाऽन्यस्य चपेटायां दीयमानाया श्रु०१२ अ०। मातुरः स्वस्थीभवति / व्य०५ उ०। चिंता स्त्री० (चिन्ता)। चिन्तनं चिन्ता। नं० / मनश्चेष्टायाम् आव०४ चास पुं० (चाष)। किकीदिविनि, प्रश्न०१ आश्र० द्वार। पक्षिविशेषे, रा० अ० / विचारे, उत्त०२३ अ०। पर्यालोचने, सूत्र०१ श्रु०१२ अ०। दश० / जी०। प्रव० / प्रज्ञा०। ज्ञा०। उत्त०। स्वरूपपर्यालोचनरूपायां कथायाम्, आव०४ अ०। चासपिच्छन० (चाषपिच्छ)। चाषपक्षे, रा०। चिंताजोग पुं० (चिन्तायोग)। अतिसूक्ष्यसंयुक्तिचिन्तनसंबन्धे, षो०११ चिअ अव्य० / “णइ-चेअ-चिअ-च्च अवधरणे" 382 / 18 / / इति | विव०॥ अवधारणे चिअशब्दः / अवधारणे, प्रा०२ पाद / “सेवादौ वा" | चिंताणाण न० (चिन्ताज्ञान)। क्षीररसास्वादतुल्ये, षो०११ विव०) बाराः / इति वा द्वित्वम्। 'तं चेअ' 'तच'। प्रा०२ पाद। चिंतामणि पुं० (चिन्तामणि)। चिन्तामात्रेणैवार्थप्रदे मणिभेदे, मन्त्रभेदे, चित त्रिका व्याप्ते, अनु०। षो०२ विव०।

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