Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश-वन्दन
टिवन्दनारे...... तिकि
गि हार्दिक शुभकामना ति यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि व्याख्यान वाचस्पति आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. की पावन स्मृति में एक स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन किया जा रहा है। जब हम श्रद्धेय आचार्यश्री के समग्र जीवन पर दृष्टिगत करते हैं तो पाते हैं कि उनका जीवन अनेक अनुपम विशेषताओं से भरा हुआ था और विविध आयामी था। वे एक और संयम पालन में कठोर थे तो दीन-दुःखियों के अभावों को दूर करने में कोमल हृदयीभी थे। वे उक्त महान साहित्य सेवी के साथ-साथ उच्चकोटि के साधक भी ये समाज सधारक के साथ श्रेष्ठ प्रवचनकार भी थे। जैन धर्म में तप की महिमा का काफी वर्णन है तप से शरीर भले ही क्षीण हो, किन्तु अनोबल में वृद्धि होती है और अनेक लब्धियों की प्राप्ति होती है। आप इन लक्ष्य से अच्छी प्रकार से परिचित थे। तभी तो आपकी प्रेरणा से अनेक विघ तपस्याओं और उपघान तप आदि के आयोजन हुए।
आपके पावन सान्निध्य में अनेक संघ यात्राओं का भी आयोजन हुआ। इससे यात्रियों को विभिन्न क्षेत्रो की जानकारी मिली और तीर्थ यात्रों का लाभ प्राप्त हुआ।
आप एक तिर्थोद्धारक के रूप में भी जाने जाते हैं। आपके सुप्रसिद्ध तीर्थ लक्ष्मणी जिलाझाबुआ (म.प्र.) एवं श्री भाण्डवपुर तीर्थ जिला-जालोर : राज. का उद्धार करवाया जिनका काफी विकास हो चुका है और हजारों यात्री यहां प्रतिवर्ष आकार दर्शन वंदन एवं पूजन कर लाभ प्राप्त करते
पूज्य आचार्य भगवंत की सेवा में अनेक मुमुक्षुओं ने दीक्षावृत्त अंगीकार किया, जिनमें वे आज भी अनेक गुरु गच्छा की महिमा में चार चांद लगा रहे हैं। ऐसे महान आचार्य भगवंत की स्मृति में आपका यह प्रयास अनुमोदनीय है। इसकी सफलता के लिए में अपनी ओर से तथा अपने परिवार की ओर से हृदय की गहराई से शुभ कामना प्रेषित करता हूं। कामकागद तिमिल किया प्रति,
- महेन्द्रकुमार नरपतराजजी कोठारी ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ जियालालागंज
भैसवाड़ा : भीवण्डी प्रधान सम्पादक श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ
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