Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन
संबंध में प्राप्त होता है, उतना अन्य किसी भी सूत्र के सम्बन्ध में नहीं। इसका कारण है कि इसमें श्रमण और श्रावक की दैनिक आवश्यक क्रिया का वर्णन है। इस ग्रंथ पर प्राचीन प्राकृत और संस्कृत टीकाओं से आरंभ कर आधुनिक गुजराती, हिन्दी आदि भाषाओं में उपलब्ध प्रभूत साहित्य इस बात का प्रमाण है कि प्रत्येक शताब्दी में आवश्यक सूत्र पर कुछ न कुछ लिखा गया है। आवश्यक सूत्र के मुख्य रूप से लिखे गये व्याख्यात्मक साहित्य के पांच प्रकार है -
1. नियुक्ति - आवश्यकनियुक्ति 2. भाष्य - विशेषावश्यकभाष्य 3. चूर्णि - आवश्यकचूर्णि 4. वृत्ति - आवश्यकवृत्ति 5. स्तबक (टब्बा)
वर्तमान समय में हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी आदि भाषाओं में भी आवश्यक का विवेचन उपलब्ध है। 1. आवश्यक नियुक्ति एवं नियुक्तिकार भद्रबाहु
जिस प्रकार वेदों के शब्दों की व्याख्या के लिए निरुक्त की रचना हुई वैसे ही जैन आगमों के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए या मूल ग्रंथ के प्रत्येक शब्द की विवेचना एवं आलोचनात्मक ज्ञान के लिए उन पर व्याख्यात्मक ग्रंथ लिखने की शुरुआत नियुक्ति से हुई है। सूत्र में निश्चय किया हुआ अर्थ जिसमें निबद्ध हो उसे नियुक्ति कहते हैं। नियुक्ति को परिभाषित करते हुए आचार्य भद्रबाहु ने लिखा है -निज्जुत्ता ते अत्था, जं बद्धा तेण होइ निजुत्ती यदि संक्षेप में नियुक्ति की परिभाषा करें तो शब्द का सही अर्थ बताना नियुक्ति है। नियुक्तियों की व्याख्यान शैली निक्षेप पद्धति के रूप में प्रसिद्ध है अर्थात् निक्षेप-पद्धति के आधार पर किये जाने वाले शब्दार्थ के निर्णय (निश्चय) का नाम नियुक्ति है। यह व्याख्या-पद्धति बहुत प्राचीन है। इसका अनुयोगद्वार आदि में दर्शन होता है। इस पद्धति में किसी एक पद के संभवित अनेक अर्थ करने के बाद उनमें से अप्रस्तुत अर्थों का निषेध करके प्रस्तुत अर्थ ग्रहण किया जाता है। जैन न्यायशास्त्र में इस पद्धति का बहुत ही महत्त्व है।
नियुक्ति आगमों पर आर्या छंद में प्राकृत गाथाओं में लिखा हुआ संक्षिप्त विवेचन है। इसमें विषय का प्रतिपादन करने के लिए अनेक कथानक, उदाहरण और दृष्टांतों का उपयोग हुआ है। ईसवी सन् की पांचवीं-छठी शताब्दी के पूर्व ही, नियुक्तियाँ लिखी जाने लगी थीं। विक्रम संवत् की पांचवीं शताब्दी में नयचक्र के कर्ता मल्लवादी ने अपने ग्रंथ में नियुक्ति की गाथा का उद्धरण दिया है42 इससे नियुक्तियों की प्राचीनता सिद्ध होती है।
नियुक्ति की परिभाषा - जिनभद्रगणि के अनुसार - 1. 'निज्जुत्ती वक्खाणं' (नियुक्तिः व्याख्यानम्) अर्थात् नियुक्ति का अर्थ व्याख्या है। किन्तु इस व्याख्या में अनुगम (अनुयोग) पद्धति का अवलम्बन विशेष रूप से लिया जाता है।
2. सूत्र और अर्थ का योग या अर्थ घटना को युक्ति का जाता है और निश्चयपूर्वक या अधिकता (विस्तार) पूर्वक अर्थ का सम्यक् निरूपण नियुक्ति है। अथवा नियुक्त अर्थों की युक्ति (नियुक्तयुक्ति) ही नियुक्ति है, अर्थात् सूत्रों में ही परस्पर सम्बद्ध अर्थों से युक्ति करना ही नियुक्ति है। 40. गणधरवाद, प्रस्तावना पृ० 2
41. आवश्यकनियुक्ति गाथा 82 42. बृहत्कल्प सूत्र, (सं. मुनि पुण्यविजय) भाग 6 की प्रस्तावना पृष्ठ 6 43. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 965 और बृहवृत्ति
44. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 1085-1086 और बृहद्वृत्ति