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६. छठी ब्रह्मचर्य प्रतिमा है, ७वीं में सचित्त वस्तु के आहार का त्याग होता है, परन्तु आवश्यक कार्य में आरम्भ करने का त्याग नहीं होता। आठवीं में स्वतः आरंभ करने का, ६ वीं में दूसरों से आरंभ करवाने का त्याग होता है और १०वीं में उसके लिए बनाये हुए भोजन का त्याग होता है।
यहाँ तक आठवीं प्रतिमा तक की पालना तो गृहत्याग के बिना ही विवेकपूर्वक धर्मसाधना करते रहने से हो सकती है। परन्तु भगवान् के उपासकों का चरित्र देखते हुए और उनकी साधना पर विचार करते हुए लगता है कि वे विशेष साधक थे। सम्यक्त्व युक्त अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रतों का पालन तो वे चौदह वर्ष तक करते ही रहते थे। पन्द्रहवें वर्ष में उनकी भावना बढ़ी, परन्तु सर्वत्यागी निर्ग्रन्थ होने जितना सामर्थ्य अपने में नहीं पाया, फिर भी उन्हें त्याग तो विशेष करना ही था। श्रमणोपासक के लिए प्रतिमा का आराधन करने के सिवाय विशेष साधना उनके सामने नहीं थी। इसलिए उन्होंने घरबार का त्याग करने के बाद ही प्रतिमा का पालन .. करना चालू किया और तपस्या भी चालू कर दी। दर्शन-प्रतिमा का पालन करते समय भी वे ! अन्य व्रतों के पालक, ब्रह्मचारी और रात्रि-भोजन के त्यागी रहे थे। गृह त्याग कर उपाश्रय में चले जाने के पश्चात् भी वे चौथी प्रतिमा तक अब्रह्मचारी या रात्रि-भोजी रहे हों, ऐसा मानने में नहीं आता। अतएव यही उचित प्रतीत होता है कि वे विशेष साधक थे-श्रमणभूत आराधक थे।
वैसे श्रमणोपासक आज भी हो सकते हैं .. जब आनन्द-कामदेवजी और अरहन्नक श्रमणोपासक का वर्णन आता है, तो कई लोग यह कह कर बचाव करते हैं कि-'यह तो चौथे आरे की बात है। आज न तो वैसा शरीर-संहनन है
और न आत्मसामर्थ्य। इस युग में उनकी बराबरी नहीं हो सकती। अभी पाँचवाँ आरा है। शरीर ढीले ढाले हैं, शक्ति कम है, परिस्थिति प्रतिकूल है। इसलिए समय के अनुसार चलना चाहिये।'
यह ठीक है कि यह पाँचवाँ आरा है, संहनन-संस्थान वैसे नहीं हैं और धन-सम्पत्ति भी उतनी नहीं है। परन्तु आत्म-सामर्थ्य से सम्यक् पुरुषार्थ उतना नहीं हो सके, ऐसा मानना उचित नहीं है। आज भी श्रमणोपासक उन जैसी साधना और तपस्या कर सकते हैं और उनसे अधिक भी। कई मासखमण, कोई दो मास, तीन मास तक की तपस्या करने वाले और संथारा कर के देह त्यागने वाले आज भी हैं।
इस पंचमकाल में भी अपनी टेक पर मर-मिटने वाले दृढ़ मनोबली हैं। राजनैतिक उद्देश्य से स्वयं मौत के मुंह में जाने वाले क्रान्तिकारी हुए। धैर्यपूवर्क फाँसी पर लटकने वाले हुए और
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