________________
तीर्थंकरों की उत्पत्ति: कहाँ और कब ?
यह प्रश्न अनायास ही उपस्थित हो जाता है कि तीर्थंकरों की उत्पत्ति, उनका जन्म कहाँ किस क्षेत्र में तथा कब होता है ?
इसका समाधान जानने से पूर्व हमें जैन भूगोल के बारे में पढना तथा समझना होगा। हालांकि वर्तमान भूगोल के साथ इसका मेल नहीं खाता किन्तु परम सत्य के ज्ञाता, सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीर्थंकर एवं उत्तरवर्त्ती महामनीषी आचार्यों से अधिक ज्ञानी कोई वैज्ञानिक नहीं हो सकता। जिस प्रकार कुछ शताब्दी पूर्व विज्ञान पृथ्वी को गोल नहीं मानता था, अंटार्कटिका नामक भूखंड से परिचित नहीं था, इत्यादि किन्तु शोधों से विज्ञान ने अपनी धारणाएँ बदलीं। आज भी बरम्यूडा ट्राएंगल आदि के रहस्यों को विज्ञान सुलझा नहीं पाया है। उसकी धारणाँ निरन्त बदलती रहती हैं। विज्ञान उतना
कर्मभूमि
1. यहाँ लोग असि ( तलवार - शस्त्रादि) मसि 1. (कागज-कलमादि) कृषि ( खेती बाड़ी) द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते हैं।
2. यहाँ सदैव युगलिए उत्पन्न नहीं होते । 3. यहाँ पर राज्य नीति होती है।
2. हमेशा मंदकषायी युगलिए होते हैं । लोग यहाँ स्वतंत्र रहते हैं ।
3.
4.
4. यहाँ पर विवाह आदि विधि अनुसार होते हैं। व्यक्ति पुत्र पौत्र आदि पीढ़ियाँ देख सकता है।
यहाँ विवाह आदि प्रथा नहीं होती। एक व्यक्ति जीवनकाल में केवल अपने पुत्र-पुत्री को ही देख सकता है।
अकर्मभूमि
यहाँ असि - मसि - कृषि का व्यवहार नहीं होता । लोग कल्पवृक्षों द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते हैं।
5. भूकम्प, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि प्राकृतिक 5. यहाँ पर भूकम्प, अतिवृष्टि आदि प्राकृतिक उपद्रव तथा रोग होते रहते हैं। उपद्रव नहीं होते । रोगों का भी सर्वथा अभाव रहता है।
6. यहाँ के भव्य जीव केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष 6. यहाँ मुक्ति नहीं होती क्योंकि साधु-साध्वी नहीं जा सकते हैं। होते। अतः धर्म व्यवहार नहीं होता ।
मर्यादा से अधिक नहीं हँसना चाहिए।
-
सूत्रकृताङ्ग (1/9/29)