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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 21
तीर्थंकरों की उत्कृष्ट संख्या
एक महाविदेह में 32 विजय शास्त्रोक्त हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर 5 महाविदेह क्षेत्रों में 32 x 5 = 160 विजय हैं। एक विजय में अधिक-से-अधिक एक विहरमान विद्यमान हो सकता है । इस प्रकार महाविदेह क्षेत्रों में उत्कृष्ट 160 तीर्थंकर सम्भव हैं।
एक भरत क्षेत्र में एकसमय में एक ही तीर्थंकर होता है । अतः 5 भरत के व 5 ऐरावत के उत्कृष्ट एक समय में हो सकते हैं। कुल उत्कृष्ट तीर्थंकर 160+5+5= 170 हैं।
किन्हीं जैनाचार्यों का मत है कि महाविदेह क्षेत्रों में तीर्थंकर एवं तीर्थंकर बनने वाली आत्माएँ एक समय में उत्कृष्ट रूप से 1680 हैं। चूँकि 1-1 विहरमान के पीछे 82-83 तीर्थंकर गृहवास में होते हैं। जो बीस विहरमानों के पीछे 20 x 83 = 1660 तीर्थंकरों की आत्माएँ गृहवास में होती हैं। 20 तीर्थंकर पद भोगते हुए तथा 1660 गृहवासी तीर्थंकर आत्माएँ कुल 1680 तीर्थंकरों की आत्माएँ एक समय पर होनी चाहिए। ऐसा गणित विचारणीय है ।
शास्त्रों में तीर्थंकर सम्बन्धी गणित अनेक प्रकार से दिया गया है। हम जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में निवास करते हैं, जहाँ ऋषभ, अजित, संभव, पार्श्व, महावीर इत्यादि तीर्थंकर हुए हैं। हमारे पूर्वाचार्यों को भी इन्हीं का परिज्ञान अधिक था । अतः तीर्थंकर शब्द से भरत ऐरावत के तीर्थंकरों का विशेष सन्दर्भ लेना चाहिए ।
तीर्थंकर चौबीस ही क्यों ?
सभी ज्ञानपिपासुओं की यह सामान्य एवं प्राथमिक जिज्ञासा रहती है कि तीर्थंकरों की संख्या 24 ही क्यों है ? 18, 27 इत्यादि क्यों नहीं ? निश्चित रूप से यह जिज्ञासा गम्भीर है। किन्तु इसका समाधान इतना तार्किक नहीं है, क्योंकि इसका कोई विशेष कारण नहीं है।
आचार्य श्रीसोमदेवसूरिजी स्वलिखित ग्रन्थ 'यशस्तिलकचम्पूकाव्य' प्रबन्ध में फरमाते हैंनियतं न बहुत्वं चेत्कथमेते तथाविधाः । तिथि-तारा-ग्रहाम्भोधि - भूभृत्प्रभृतयो मताः ॥
अर्थात् तिथि- वार, नक्षत्र, तारा, ग्रह, समुद्र, पर्वत इत्यादि सभी की संख्या नियत है, किन्तु उनकी संख्या इतनी ही क्यों है, इसका कोई कारण नहीं है, क्योंकि यह सब प्राकृतिक नियमानुसार होता है। उसी प्रकार तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही क्यों है, इसका कोई विशेष कारण नहीं है। यह सब प्रकृति के नियमों के अनुसार चलता आया है, जिसका कोई आदि और अंत नहीं है। एक दिन में 24 घंटे ही क्यों हैं? इसका कोई उत्तर नहीं है ।
जो व्यक्ति संस्कारहीन हैं, तुच्छ हैं, परप्रवादी हैं, राग और द्वेष में फँसे हुए हैं, वासनाओं के दास हैं, वे धर्मरहित हैं, अधर्मी हैं। उनसे हमेशा दूर रहना चाहिए । उत्तराध्ययन (4/13)