Book Title: Tirthankar Ek Anushilan
Author(s): Purnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publisher: Purnapragnashreeji, Himanshu Jain

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Page 237
________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8216 महाविदेह क्षेत्र के 20 विहरमान तीर्थंकर लांछण (चिह्न) विहरमान का नाम 1. श्री सीमन्धर स्वामी 2. श्री युगमंधर स्वामी 3. श्री बाहु स्वामी 4. श्री सुबाहु स्वामी श्री सुजात ( संयातक) स्वामी श्री स्वयंप्रभ स्वामी 5. 6. 7. श्री ऋषभानन स्वामी 8. श्री अनन्तवीर्य स्वामी 9. श्री सूरप्रभ (सुरप्रभ) स्वामी 10. श्री विशालधर (विशालकीर्ति) स्वामी 11. श्री वज्रधर स्वामी 12. श्री चन्द्रानन स्वामी 13. श्री चन्द्रबाहु स्वामी 14. श्री भुजंगप्रभ (भुजंगदेव ) स्वामी 15. श्री ईश्वर स्वामी 16. श्री नेमिप्रभ ( नेमीश्वर) स्वामी 17. श्री वीरसेन स्वामी 18. श्री महाभद्र स्वामी जी 19. श्री देवसेन (देवयश) स्वामी 20. श्री अजितवीर्य स्वामी वृषभ (बैल) हस्ति (गज) मृग (हिरण) कपि (बंदर) सूर्य चंद्र सिंह हस्ति (गज) चन्द्र सूर्य शंख / वृषभ वृषभ पद्म (कमल) पद्म (कमल) चंद्र सूर्य वृषभ हस्ति ( गज) चंद्र स्वस्तिक द्वीप का नाम जंबु (जम्बू द्वीप "" 99 धातकी खण्ड द्वीप "" 99 "" 29 "" 99 99 अर्ध पुष्कर द्वीप 99 "" 22 22 " 99 "" विशेष : इन बीसों विहरमान तीर्थंकरों का जन्म हमारे जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के 17वें तीर्थंकर कुंथुनाथ जी के निर्वाण के बाद एक ही समय में हुआ था । बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी जी के निर्वाण होने के बाद इन सब ने एक ही साथ दीक्षा ली एवं एक माह पश्चात् केवलज्ञानी हुए। ये बीसों ही भरतक्षेत्र की भविष्यकाल की चौबीसी के सातवें तीर्थंकर श्री उदयनाथ जी के निर्वाण के बाद एक साथ मोक्ष पधारेंगे। उसी समय अन्य आत्माएँ तीर्थंकरत्व प्राप्त करेंगी । अर्थात् महाविदेह क्षेत्र तीर्थंकरों से न्यून नहीं रहता, बीस तो होते ही हैं।

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