Book Title: Tirthankar Ek Anushilan
Author(s): Purnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publisher: Purnapragnashreeji, Himanshu Jain

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Page 250
________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 229 पुष्करार्ध द्वीप के पश्चिम ऐरावत क्षेत्र की त्रिकाल चौबीसी क्र.सं. भूत काल 1. श्री सुसंभव ( उपशांत) 2. श्री फाल्गुन 3. श्री पूर्वा 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. श्री सुन्दर श्री गैरिक (गौरव) श्री त्रिविक्रम श्री नरसिंह श्री मृगवसु श्री सोमेश्वर (सौम्य ) श्री सुखभानु श्री अपाप श्री बिबोध श्री संजमिक (सिद्ध) श्री माधीना श्री अश्वतेजा श्री विद्याधर श्री सुलोचन श्री. मौननिधि श्री पुंडरीक श्री चित्रगण श्री माणहिदु ( मतइन्द्र) श्री सर्वांकल श्री भूरिश्रवा श्री पुण्यांग वर्तमान काल श्री गांगेय श्री नलवशा ( बलभद्र ) श्री भीम श्री ध्वजाधिक (दयानाथ ) श्री मुनिनाथ श्री सुभद्र श्री इन्द्रक श्री स्वामीनाथ श्री चंद्रकेतु श्री हितक श्री नंदिघोष श्री रूपवीर्य श्री व्रजनाभ श्री संतोष श्री धर्म श्री फणेश्वर श्री वीरचंद्र श्री मोघानिक श्री स्वच्छ श्री कोपक्षय श्री अकाम श्री धर्म (संतोषित) श्री शत्रुसेन ( शुक्लसेन) श्री क्षेमंकर श्री दयानाथ श्री कीर्तिनाथ श्री शुभंकर भविष्य काल श्री अदोष श्री वृषभ श्री विनयानंद श्री ध्वजादित्य | श्री वस्तुबोध श्री मुक्तिगति (वसुकीर्ति) श्री धर्मबोध श्री देवांग श्री मरीचिका श्री सुजीव श्री यशोधर श्री गौतम श्री मुनिशुद्ध श्री प्रबोध श्री शतानीक श्री चार श्री शतानंद ( सदानंद) श्री वेदार्थ श्री सुधा श्री ज्योतिर्मुख श्री सूर्यांक भयभीत साधक तप और संयम को भी तिलांजलि दे देता है। वह किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के दायित्व को निभा नहीं पाता और न ही सत्पुरुष द्वारा आचरित मार्ग पर ही चलने में समर्थ होता है। प्रश्नव्याकरण (2/2)

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