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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 235
पुष्करार्धद्वीप-पूर्व भरत क्षेत्र
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तीर्थंकर | धातकीखंड-पश्चिम भरत क्षेत्र क्रमांक
(7) अतीत चौबीसी श्री सुमृदुनाथ सर्वज्ञाय नमः श्री अव्यक्तनाथ अर्हते नमः श्री अव्यक्तनाथ नाथाय नमः श्री अव्यक्तनाथ सर्वज्ञाय नमः श्री कलाशतनाथ नाथाय नमः (8) वर्तमान चौबीसी श्री अरण्यबाहु सर्वज्ञाय नमः श्री योगनाथ अर्हते नमः श्री योगनाथ नाथाय नमः श्री योगनाथ सर्वज्ञाय नमः श्री अयोगनाथ नाथाय नमः (9) अनागत चौबीसी श्री परमेश्वर सर्वज्ञाय नमः श्री शुद्धार्तिकनाथ अर्हते नमः श्री शुद्धार्तिकनाथ नाथायनमः श्री शुद्धार्तिकनाथ सर्वज्ञाय नमः श्री निष्केशनाथ नाथाय नमः
(10) अतीत चौबीसी 4. श्री प्रलंबित सर्वज्ञाय नमः 6. श्री चारित्रनिधि अर्हते नमः 6. श्री चारित्रनिधि नाथाय नमः 6. श्री चारित्रनिधि सर्वज्ञाय नमः 7. श्री अपराजितनाथ नाथाय नमः
(11) वर्तमान चौबीसी 21. श्री मृगांकनाथ सर्वज्ञाय नमः 19. श्री प्रसादनाथ अर्हते नमः 19. श्री प्रसादनाथ नाथाय नमः 19. श्री प्रसादनाथ सर्वज्ञाय नमः 18. श्री ध्वजांशिकनाथ नाथाय नमः
(12) अनागत चौबीसी 4. श्री त्रिखंभनाथ सर्वज्ञाय नमः 6. श्री प्रवादिकनाथ अर्हते नमः 6. श्री प्रवादिकनाथ नाथाय नमः 6. श्री प्रवादिकनाथ सर्वज्ञाय नमः 7. श्री भूमानंदनाथ नाथाय नमः
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धातकी खंड के दक्षिण भरतार्ध में विजयपुर नगर में सूर नामक सेठ था। गुरुदेव के श्रीमुख से मौन एकादशी की महिमा सुनी तो उसने 11 वर्ष तक मौन एकादशी का तप किया व विधिपूर्वक उद्यापन किया। अनुक्रम से तप के प्रभाव से वह आरण देवलोक में 21 सागरोपम की आयुवाला देव हुआ।
देश, काल एवं कार्य को बिना समझे समुचित प्रयत्न तथा उपाय से हीन किया जाने वाला कार्य सुख-साध्य होने पर भी सिध्द नहीं होता है।
- निशीय-भाष्य (4803)