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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 220
जंबूद्वीप भरतक्षेत्र की त्रिकाल चौबीसी क्र.सं. | भूत काल
वर्तमान काल
भविष्य काल | श्री केवलज्ञानी
श्री ऋषभदेव (आदिनाथ) श्री पद्मप्रभ (महापद्म) श्री निर्वाणी श्री अजितनाथ
श्री सूरदेव श्री सागर जिन श्री संभवनाथ
श्री सुपार्श्व श्री महायश
श्री अभिनंदन स्वामी श्री स्वयंप्रभ श्री विमल श्री सुमतिनाथ
श्री सर्वानुभूति श्री सर्वानुभूति (नाथसुतेज) श्री पद्मप्रभ
श्री देवश्रुत श्री श्रीधर श्री सुपार्श्वनाथ
श्री उदयप्रभ श्री श्रीदत्त श्री चंद्रप्रभ
श्री पेढाल श्री दामोदर
श्री सुविधिनाथ (पुष्पदंत) श्री पोटिल श्री सुतेज श्री शीतलनाथ
श्री शतकीर्ति श्री स्वामी जिन श्री श्रेयांसनाथ
श्री मुनिसुव्रत | श्री मुनिसुव्रत (शिवाशी) श्री वासुपूज्य स्वामी श्री अमम | श्री सुमति श्री विमलनाथ
श्री निष्कषाय | श्री शिवगति श्री अनन्तनाथ
श्री निष्पुलाक श्री अस्त्याग (अवधि) श्री धर्मनाथ
श्री निर्मम (निर्मल) श्री नमीश्वर (नेमीश्वर) श्री शान्तिनाथ
श्री चित्रगुप्त श्री अनिल श्री कुंथुनाथ
श्री समाधि श्री यशोधर श्री अरनाथ
श्री सवरक (संतर) श्री कृतार्थ श्री मल्लिनाथ
श्री यशोधर श्री जिनेश्वर (धर्मीश्वर) श्री मुनिसुव्रत
श्री विजय श्री शुद्धमति श्री नमिनाथ
श्री मल्लि श्री शिवकर
श्री नेमिनाथ (अरिष्टनेमि) श्री देवजिन स्यन्दन श्री पार्श्वनाथ
श्री अनंतवीर्य श्री सम्प्रति
श्री महावीर स्वामी (वर्धमान)| श्री भद्रंकर (भद्रजिन)
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ब्राह्मण वही कहला सकता है, जो स्थावर तथा जंगम सभी प्राणियों को भली-भांति जानकर, मन, वचन और देह से उनकी हिंसा नहीं करता। - उत्तराध्ययन (25/23)