Book Title: Tirthankar Ek Anushilan
Author(s): Purnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publisher: Purnapragnashreeji, Himanshu Jain

View full book text
Previous | Next

Page 247
________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 226 पुष्करार्ध द्वीप के पूर्व भरत क्षेत्र की त्रिकाल चौबीसी वर्तमान काल श्री जगन्नाथ श्री प्रभास (ईश्वर) 1 क्र.सं. भूत काल श्री मदनकाय श्री मूर्तिस्वामी श्री निराग श्री प्रलंबित श्री पृथ्वी श्री चारित्रनिधि श्री अपराजित श्री सुबोधक श्री बुद्धेश श्री वैतालिक श्री त्रिमुष्टिक श्री मुनिबोध श्री तीर्थस्वामी श्री धर्माधिक श्री वमेश (यमेश) 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. श्री सुरस्वामी श्री भरतेश श्री दीर्घनाथ श्री विजित (विख्यात) श्री अवसानक श्री प्रबोध श्री तपोनिधि श्री पाठक श्री त्रिपुरेश (त्रिकर) श्री शोगत 12. 13. श्री वास श्री अहमत् (मनोहर) 14. 15. श्री शुभकर्म (सुकर्मेश ) 16. श्री समाध 17. श्री सप्तादिश ( प्रभुनाथ ) श्री कर्मान्तिक श्री अमलेन्द्र श्री धर्मवृक्ष (ध्वजांजिक) 18. श्री आनन्द 19. श्री सर्वतीर्थ श्री प्रसाद श्री विपरीत 20. श्री निरुपम 21. श्री कुमारिक 22. 23. श्री विहारगृह श्री धरणीश्वर श्री मृगांक श्री कफाटिक श्री गजेन्द्र 24. श्री विकास श्री ध्यान भविष्य काल श्री वसन्तध्वज श्री त्रिमातुल श्री अघटित श्री त्रिखभ श्री अचल श्री प्रवादिक श्री भूमानंद श्री त्रिनयन श्री सिद्धान्त श्री प्रसंग (प्रथग) श्री भद्रेश श्री गोस्वामी | श्री प्रवासिक (कल्याण) श्री मंडल श्री महावसु श्री उदीयन्तु (तेजोदय्) श्री दुर्दुरिक (दिव्यज्योति ) श्री प्रबोध श्री अभयांक श्री प्रमोद श्री दिव्यशक्र (दृकारिक ) श्री व्रतस्वामी श्री निधान श्री निःकर्मक साधक अपने को क्रोध से बचाए, अहंकार को दूर करे, माया का सेवन न करे और लोभ को त्याग दे। - उत्तराध्ययन (4/12)

Loading...

Page Navigation
1 ... 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266