Book Title: Tirthankar Ek Anushilan
Author(s): Purnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publisher: Purnapragnashreeji, Himanshu Jain

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Page 239
________________ मेरु पर्वत 1. सुदर्शन मेरु 2. 3. 4. 5. विजय मेरु 6. 7. 8. 9. 10. = 11. 66 97 "" 99 "" 34 अचल मेरु 99 "" "" 99 99 22 12. 13. पुष्कर (मंदर) मेरु रेणुका (विजया) 14. महिमा 15. यशोज्ज्वला 16. सेनादेवी 17. विद्युन्माली रु भानुमती 29 18. उमादेवी 19. गंगादेवी 20. कनिका देवी "" तीर्थंकर : एक अनुशीलन 218 माता का नाम पिता का नाम सत्यकी श्रेयांस सुतारा सुदृढ़ विजया सुग्रीव निषध देवसेन 22 सुनन्दा देवसेना सुमंगला वीरसेना मंगलावती विजयावती भद्रावती सरस्वती पद्मावती मित्रभुवन कीर्तिराजा मेघराजा विजयसेन श्रीनाग (नाग) पद्मरथ वाल्मीक देवनंद (देवानंद) महाबल | गजसेन (वज्रसेन) वीरराजा भूमिपाल (भानुसेन ) | देवराजा ( देवसेन) | सर्वानुभूति ( संवरभूति) राजपाल संक्षेप में कहने योग्य बात को व्यर्थ ही बढ़ावा न दें। पत्नी / रानी का नाम रुक्मिणी प्रियमंगला - मोहिनी किंपुरिषा जयसेना प्रियसेना (वीरसेना) जयावंती विजयावती (कुंतीदेवी) नंदसेना विमलादेवी विजयावती लीलावती सुगंधादेवी गंधसेना विशेष : श्री सीमंधर स्वामी जी भरतक्षेत्र से 33157 योजन और 17 कलाँ दूर हैं। वहाँ महाविदेह क्षेत्र में नवकार मंत्र की साधना सतत चालू रहती है । महाविदेह क्षेत्र के साधुओं की मुहपत्ती यहाँ की 1,60,000 मुहपत्तियों के बराबर होती है यानी 400 गुना लंबी, 400 गुना चौड़ी। उनके मुख का प्रमाण 50 हाथ जितना और पात्र के नीचे का प्रमाण 17 धनुष लंबा होता है। वे भी 32 कवल का आहार करते हैं और उनके 32 मुडा का एक कवल होता यानी 1024 मुडा प्रमाण आहार ग्रहण करते हैं । भद्रावती मोहिनी राजसेना सूर्य पद्मावती रत्नावती (रत्नमाला) सूत्रकृताङ्ग (1/14/23)

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