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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 9 124
णमोत्थुणं में तीर्थंकरों के विशेषण
स्वयं की आत्मा को परम पवित्र बनाने एवं भाषावर्गणा के पुद्गलों को कर्मनिर्जरा में सहायक बनाने हेतु स्तव, स्तुति उत्तम साधन हैं। तीर्थंकरों की विशेषताओं को पुष्पमाला की तरह सजोकर 'नमोत्थुणं' की स्तुति की जाती है जो सर्वप्रथम शक्रेन्द्र करता है।
____ अरिहंताणं भगवंताणं - तीर्थंकर को अरिहंत एवं भगवंत (भगवान) के विशेषण से आराध्य बनाया है।
तित्थयराणं - जिससे संसार रूपी समुद्र पार हो, ऐसे श्रमण-श्रमणी श्राविका श्रावक रूपी चतुर्विध संघ की रचना करने वाले तीर्थंकर निम्नलिखित गुणों के धारक होते हैं।
आईगराणं - कालाश्रयी श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म की सर्वप्रथम प्ररूपणा, आदि (शुरुआत) करने वाले।
सयंसंबुद्धाणं - गुरु के उपदेश बिना स्वयं ही प्रतिबोधित होकर, षड्द्रव्यों के हेय, ज्ञेय एवं उपादेय का स्वयं स्वरूप समझकर बोध को प्राप्त हुए (स्वयं-सम्बुद्ध)
पुरिसुत्तमाणं - 1008 उत्तम लक्षणों से युक्त बाह्यरूपकांति ऐश्वर्यादि एवं अन्तरंग गुणादि में जगत् के समस्त पुरुषों में सर्वोत्तम एवं श्रेष्ठ (पुरुषोत्तम)।
पुरिससीहाणं - सिंह के समान अत्युत्कृष्ट शौर्य के स्वामी, वनचर रूपी सभी जीवों को क्षुब्ध कराते हुए व प्रवर्तित मार्ग में निडर स्वयं प्रवृत्त हुए उत्तम पुरूष। (पुरुषसिह)
पुरिसवरपुण्डरीयाणं - पुरुषों में पुण्डरीक (कमल) के समान। जिस प्रकार सहस्रकमल कीचड से अलिप्त रहता हुआ रूप व सुगंध में अनुपम होता है, उसी प्रकार तीर्थंकर कामरूपी कीचड़ तथा भोग रूपी पानी से अलिप्त रह महायश व अनंत गुणों के भंडारी हैं।
पुरिसवरगंधहत्थीणं - पुरुषों में गन्धहस्ती के समान। जैसे गंधहस्ती सेना में श्रेष्ठ तथा अस्त्र शस्त्र की परवाह नहीं करता है, उसी प्रकार तीर्थंकर चतुर्विध संघ के नायक तथा उपसर्गपरीषह का शमन करते हैं। गंधहस्ती की गंध से पर का संकट दूर होता है, वैसे ही तीर्थंकरों का विचरण सर्वसंकट दूर करने वाला होता है।
लोगुत्तमाणं - लोकोत्तम। बाह्य तथा आंतरिक विभूतियों से युक्त तीर्थंकर परमात्मा तीनों लोकों में सर्वोत्तम हैं।
लोगनाहाणं - लोकनाथ। भव्य जीवों के योगक्षेम कराने वाले अर्थात् समकितादि प्राप्त कराने वाले तीर्थंकर लोक के नाथ (स्वामी) हैं। जो व्यक्ति चारित्र-गुण से रहित है, वह बहुत से शास्त्र पढ़ लेने पर भी संसार-समुद्र में डूब जाता
- आवश्यकनियुक्ति (97)