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तीर्थकर : एक अनुशीलन
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प्रथम देशना का विषय (80)
अन्य नाम (81)
यतिधर्म और श्रावकधर्म
आदिनाथ जी धर्मध्यान के 4 प्रकार अनित्य भावना अशरण भावना एकत्व भावना संसार भावना अन्यत्व भावना अशुचि भावना आस्रव भावना
पुष्पदन्त जी संवर भावना निर्जरा भावना धर्म भावना बोधिदुर्लभ भावना लोकभावना व नवतत्त्व का स्वरूप मोक्ष का उपाय व कषाय का स्वरूप इन्द्रियविजय मन शुद्धि राग द्वेष और मोह विजय सामायिक यतिधर्म और श्रावक धर्म की योग्यता
श्रावक करणी
| 4 महाविगई, रात्रिभोजन अभक्ष्य त्याग अरिष्टनेमि जी 23. | | 12 व्रत, अतिचार व कर्मादान
पुरुषादानीय यतिधर्म और गृहस्थ धर्म
वर्धमान, सन्मति, काश्यप, ज्ञातृकुलनंदन विशेष : तीर्थंकर सर्वप्रथम आत्मबोध एवं विरतिधर्म का स्वरूप समझाते हैं। नेमिनाथ जी ने केवलज्ञान
होते ही 16 प्रहर (48 घंटे) की देशना दी थी एवं महावीर स्वामी जी ने निर्वाण से पूर्व 16 प्रहर की अस्खलित देशना प्रदान की थी।
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