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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 139
तीर्थंकर
सामान्य केवली | इनकी उत्पत्ति क्षत्रिय कुल में ही होती है। इनका जन्म किसी भी कुल में हो सकता
कुल
शुभाशुभ कर्म
द्वादशांगी
| तीर्थंकरों के वेदनीय कर्म शुभाशुभ एवं शेष | सामान्य केवली का आयुष्य कर्म शुभ, शेष
तीन अघाति कर्म एकांत शुभ होते हैं। | तीन शुभाशुभ होते हैं। | इनके मुख से त्रिपदी को सुनकर गणधर | इनकी वाणी को सूत्र-रूप में गूंथ कर सकते द्वादशांगी सूत्रों की रचना करते हैं। हैं किन्तु वे आगमरूप धारण ही करें, ऐसा
नहीं। | तीर्थंकरों में ‘णमो अरिहंताणं' पद में वंदन | सामान्य केवली को ‘णमो आयरियाणं' होता है।
(आचार्य हो तो) व णमो लोए सव्वसाहूणं' पद में वंदन होता है।
ਕਵਰ
तीर्थंकर (अरिहन्त) एवं सिद्ध आत्माएँ
तीर्थंकर चार कर्मों से रहित एवं चार प्रकार के कर्मों से युक्त होते हैं। वे शरीरी होते हैं। अतः मनुष्य लोक में ही विचरण करते हैं। किन्तु सिद्ध तो सभी कर्मों से सर्वथा रहित होते हैं, अशरीरी होते हैं एवं लोक के अग्रभाग - सिद्धशिला के ऊपर विराजमान होते हैं।
तीर्थंकर (अरिहन्त) मार्गदाता, चक्षुदाता होते हैं क्योंकि वे अपनी देशना से जग को आलोकित करते हैं। उनका पुण्य भी अपार होता है, किन्तु सिद्धों का पुण्य नहीं होता। उनका सुख अपार होता है। वे कोई देशना नहीं देते।
- तीर्थंकर का पद अशाश्वत अस्थायी है किन्तु वे काल कर के जिस शाश्वत पद को प्राप्त करते हैं, वह सिद्ध पद है। अरिहंत भाषक सिद्ध हैं व सिद्ध वस्तुतः अभाषक सिद्ध, ऐसा प्रज्ञापना सूत्र में कहा है।
जिसको भली प्रकार तैरना नहीं आता जैसे वह स्वयं डूबता है और साथ में अपने साथियों को । भी ले डूबता है उसी प्रकार उलटे मार्ग पर चलता हुआ एक व्यक्ति भी कई को ले डूबता है।
- गच्छाचार-प्रकीर्णक (30)