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जिज्ञासा : अरिहन्त, अरुहन्त, अर्हन्त आदि पदों के अर्थों में क्या वैविध्य है? समाधान : प्राकृत में अरह, अरहन्त इत्यादि कई रूप मिलते हैं जिनके भाव तो समान हैं किन्तु अर्थ भिन्न हैं।
अरह
जिनके लिए कोई रहस्य नहीं है।
जिन्होंने परिग्रहरूपी रथ का व जन्म-जरा का अन्त कर दिया है।
अरहन्त
अरिहन्त
अरहन्त
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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 166
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जिन्होंने क्रोधादि कषाय व कर्मों का क्षय ( नाश) कर दिया है।
जिन्होंने ज्ञान - दर्शन पर लगे सभी आवरणों का भेदन किया है।
अरुहन्त जिन्हें बार-बार उत्पन्न नहीं होना ।
अर्हत्
जो अध्यात्म के शिखर पर पहुँचकर वंदनीय, पूजनीय, नमस्कार योग्य बन चुके हैं।
भावों की समानता किन्तु अर्थों की भिन्नता को दर्शाने वाले इस प्रकार अनेक शब्द हैं।
जिज्ञासा : रावण ने तीर्थंकर नामकर्म बाँधा है, तो वह तीर्थंकर कब बनेगा ? समाधान : रावण ने अष्टापद तीर्थ पर जिनेन्द्रभक्ति करते हुए तीर्थंकर नाम कर्म बाँधा है, निकाचित नहीं किया। अभी उसके उत्कृष्ट 15 भव शेष थे। पंद्रह भव जितना समय व्यतीत होने पर ही वह महाविदेह नामक क्षेत्र में परम तीर्थंकर पद को प्राप्त करेगा तथा सिद्ध-बुद्ध यावत् सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त करेगा ।