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2.
तीर्थंकर : एक अनुशीलन 88152
उपर्युक्त प्रमुख संस्कृत स्तोत्रों के अलावा तीर्थंकर भक्ति निमित्त अनेक स्तोत्र रचे गए हैं। यथा
3.
• मुनि बालचन्द्रजी कृत नमोस्तु वर्द्धमानाय
• सिद्धर्षि गणि जी विरचित श्री जिनस्तवन
• उपाध्याय भोजसागर जी लिखित श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र
4 आचार्य कमलप्रभ सूरि जी विरचित जिनपंजर स्तोत्र
• धर्मघोष सूरि जी कृत चतुर्विंशति जिनस्तुतियाँ
• जिनपति सूरि जी, रत्नशेखर सूरि जी विरचित चतुर्विंशति जिनस्तवन
• भद्रबाहु स्वामी जी लिखित 'लघुजिनसहस्रनामस्तोत्र'
अन्य भाषाओं के स्तोत्रों में तीर्थंकर स्तुति
1.
जिनप्रभ सूरि जी ने फारसी भाषा में श्री ऋषभजिनस्तवन को निबद्ध किया है। ग्यारह गाथाओं में रचित इस स्तवन की पहली गाथा में वे कहते हैं
• समयसुंदर सूरि जी कृत ऋषभ भक्तामर
• वादिदेव सूरि जी विरचित कलिकुण्डपार्श्वजिनस्तवन
• धर्मवर्द्धन गणी जी द्वारा रचित वीर भक्तामर इत्यादि
अल्ला ल्लाहि तुराहं, कीम्ब रुसहिआ नु तूं मराष्कवाद । दुनीपकसमे दानइ बुस्सारह बुध चिरा नम्हं ॥
आचार्य समयसुन्दर सूरि द्वारा विरचित “ षड्भाषामयानि - जिनपंचकस्तोत्राणि” में कवि ने संस्कृत, प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची तथा अपभ्रंश, इन छह भाषाओं में ऋषभदेव, शान्तिजिन, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ तथा महावीर स्वामी की स्तवना की है।
श्री शान्तिजिन स्तवन में भी श्री सोमसुन्दर सूरि जी ने छह भाषाओं के प्रयोग से तीर्थंकर प्रभु की स्तवना की है। पैशाची भाषा में वे लिखते हैं
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नेहे जस्ससरंमि कंतिसलले वंतारुते वंगना तिट्ठीओपति-बिंबिता अचवला रंगतताराजुता । रेहंतिब्भमरप्पसंगसुभगं भोजवालीओ विव तं संतिं नमह प्पसंतहितयं कं तप्पतप्पापहं ॥
जो तत्त्व - विचार के अनुसार नहीं चलता, उससे बड़ा मिथ्यादृष्टि कौन हो सकता है ? वह दूसरों को शंकाशील बनाकर अपने मिथ्यात्व को समृध्द करता है। - उत्तराध्ययन (37/13)