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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 0 145
जिज्ञासा - तीर्थंकरों के साथ 'नाथ' शब्द जुड़ा होता है। 'नाथ' शब्द जन्म से जुड़ा होता है या बाद में जोडा गया ? क्या यह तीर्थंकरों का आधिपत्य दर्शाता है?
समाधान - तीर्थंकरों का उल्लेख वेदों, पुराणों आदि वैदिक ग्रन्थों में, त्रिपिटक आदि बौद्ध ग्रंथों में तथा समवायांग, आवश्यक, नन्दी इत्यादि अनेकानेक जैन आगमसूत्रों में भी है किन्तु उनके नाम के साथ 'नाथ' पद का उपयोग नहीं मिलता।
सर्वप्रथम भगवती सूत्र (व्याख्या प्रज्ञप्ति) एवं आवश्यक सूत्रों में तीर्थंकरों के गुणों का उत्कीर्तन करते समय लोगनाहेणं, लोगनाहाणं आदि शब्दों से विभूषित किया है। अत: उन्हें लोकनाथ कहा गया है किन्तु तीर्थंकरों के नाम के साथ 'नाथ' शब्द प्रयोग करने की परम्परा आगमकाल में नहीं रही होगी।
शब्दार्थ के दृष्टिकोण से 'नाथ' पद का अर्थ स्वामी या प्रभु होता है। आगमों में वशीकृत आत्मा के लिए भी 'नाथ' शब्द का उपयोग हुआ है। किन्तु गंभीर दृष्टि से विचारने पर प्रत्येक तीर्थंकर तीनों लोकों के स्वामी एवं अनन्तानंत गुणों से युक्त होते हैं। अत: उनके नाम के साथ 'नाथ' पद भक्तों का भक्तिभाव दर्शाता है जो नितान्त उचित है। 'नाथ' शब्द की टीका करते हुए वृत्तिकार लिखते हैं- “योगक्षेमकृन्नाथ: अलभ्यलाभो योग: लब्धस्य परिपालनं क्षेमः"। इसके अनुसार तीर्थंकर तो भव्य आत्माओं के लिए अलब्ध सम्यग्दर्शन का लाभ और लब्ध सम्यग्दर्शन का परिपालन करवाते हैं, अत: नाथ कहे जाते हैं।
लगभग चतुर्थ शताब्दी के ग्रन्थकार दिगम्बराचार्य यतिवृषभ ने तिलोयपण्णत्ति में कतिपय स्थानों पर 'नाथ' पद का उपयोग तीर्थंकर के नाम के साथ किया है। यथाभरणी रिक्खम्मि संतिणाहो य। विमलस्स तीसलक्खा अणंतणाहस्स पंचदसलक्खा।। इत्यादि। इसके बाद के सभी ग्रंथों में तीर्थंकर के साथ नाथ पद का उपयोग शनैः शनैः प्रचलित हो गया। जैन तीर्थंकरों के नाम के साथ लगे हुए नाथ शब्द की लोकप्रियता धीरे-धीरे इतनी बढ़ गई कि शैवमती योगी मत्स्येन्द्रनाथ गोरखनाथ आदि भी अपने नामों के साथ 'नाथ' जोड़ने लगे किन्तु ये वस्तुतः जैन नहीं है।
श्रमणोपासक की चार कोटियाँ हैं- 1. दर्पण के समान स्वच्छ-हृदय, 2. पताका के समान अस्थिरहृदय, 3. स्थाणु के समान मिथ्याग्रही, 4. तीक्ष्ण कंटक के समान कटुभाषी।
- स्थानांग (4/3)