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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 147
आगम साहित्य में तीर्थंकर स्तुति
द्वादशांगी का दूसरा अंग - ‘सूत्रकृतांग' में 'वीरत्थुइ' (वीरस्तुति) नामक एक स्तुतिपरक अध्ययन है। परमात्मा श्री महावीर स्वामी संबंधित ज्ञानादि के सम्बंधन में सुधर्मा स्वामी ने उत्तर रूप में प्रभु के गुण ग्रंथित किए है। सुधर्मा स्वामी ने महावीर स्वामी को दीपक के समान स्व-पर प्रकाशक, धर्मोपदेशक कहा है- 'दीवे व धम्मं समियं उदाहु।'
से पण्णया अक्ख्यसागरे वा, महोदही वावि अणंतपारे।
अणाइले वा अकसाइ मुक्के, सवके व देवाहिवई जुईमं॥ अर्थात् - वे महोदधि-स्वयंभूरमण समुद्र की भाँति प्रज्ञा से अनंत पार वाले, शुद्ध जल वाले अक्षय सागर, अकषायी, इन्द्र के समान द्युतिमान थे। इस प्रकार बृहद् रूप से प्रभु का गुणोत्कीर्तन किया गया है। इस वीरस्तुति की शब्द संरचना, अलंकार योजना, ललित-भावपूर्ण भाषा बहुत ही प्रभावशाली है। आवश्यक सूत्र में चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति रूप लोगस्स (चतुर्विंशतिस्तव) का उल्लेख है। स्तोत्र के प्रारम्भ एवं अंत में तीर्थंकरों की गुणचर्चा की है एवं मध्य में सभी चौबीस तीर्थंकरों की क्रमरूप से वंदना की है। कई विद्वानों का मत है कि इस लोगस्स सूत्र की रचना प्रभु वीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति गौतम ने की। जब गौतम को प्रभु वीर के निर्वाण की सूचना मिली, तब शोकविह्वल होकर उन्होंने प्रभु को वंदन करने का विचार किया। तभी उन्हें ध्यान आया कि प्रभु वीर से पूर्व भी 23 प्रभावक तीर्थंकर हो चुके हैं। इस प्रकार उन्होंने चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति के रूप में इसको रचा जो आगमों में निबद्ध है।
लोगस्स उज्जोयगरे, धम्मतित्थयरे जिणे।
अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसं पि केवली॥ इस प्रकार तीर्थंकरों को लोकोद्योतक, धर्मतीर्थस्थापक, रागद्वेषविजेता इत्यादि कहकर स्तुति प्रारम्भ की गई है। यहाँ पर 'चउवीसंपि' कहकर स्तोत्रकार ने गौणरूप से भूतकाल एवं भविष्यकाल की चौबीसी के तीर्थंकरों का भी स्तवन किया है। ज्ञाताधर्मकथांग एवं अन्तकृद्दशांग सूत्र में औपपातिक, राजप्रश्नीय एवं जम्बूद्वीपज्ञप्ति उपांगों में तीर्थंकरों की स्तुति के रूप में गद्य रूप में 'नमोत्थुणं' (शक्रस्तव) प्राप्त होता है, जिससे इन्द्र कल्याणक पर प्रभु की स्तुति करता है। इस सूत्र की चर्चा हम पहल के अध्ययनों में कर आए हैं।
मनुष्य कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र होता है।
- उत्तराध्ययन (25/31)