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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 137
जो प्रत्येकबुद्ध कर्मों का क्षय कर लेता है, वह सामान्य केवली बन जाता है (2) बुद्धबोधित जो भव्य जीव तीर्थंकर या सद्गुरुदेव के उपदेश को सुनकर ग्रहण करके दीक्षा लेते हैं, वे बुद्ध बोधित कहे जाते हैं। जो कर्मों को नष्ट करने में सफल होता है, वह केवलज्ञानी बन जाता है।
कल्याणक
लिंग/वेद
तीर्थंकर
सामान्य केवली च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान, निर्वाण ये इनके इन पाँच क्षणों को कल्याणक की संज्ञा पंचकल्याणक होते हैं जिन पर देवतागण नहीं दी गई अर्थात् देवता अष्टान्हिका उत्सव मनाते हैं एवं इन्द्र शक्रस्तव का | महोत्सव नहीं मनाते। उच्चारण करता है। केवल पुरुष लिंग में ही तीर्थंकरत्व प्राप्त पुरुष, स्त्री एवं नपुंसक कोई भी व्यक्ति होता है।
| सामान्य केवली बन सकता है। तीर्थंकर नाम-गोत्र कर्म के उदय से तीर्थंकर केवलीपन क्षायिक भाव अथवा अंतकृत पद प्राप्त होता है।
क्षण से मिलता है। इन्हें 1, 2, 3, 5, 11 वें गुणस्थान का स्पर्श केवल 11वां गुणस्थानक स्पर्श नहीं होता। नहीं होता। तीर्थंकर देवगति अथवा नरक से आते हैं एवं इनका च्यवन किसी भी गति से हो सकता उनकी माता चौदह स्वप्न देखती है। है। माता कोई विशेष स्वप्न नहीं देखती।
पद प्राप्ति का निमित्त
गुणस्थानक स्पर्श
च्यवन
जन्म
तीर्थंकर आर्यक्षेत्र में ही जन्मते हैं। वे माता अढाईद्वीप में कहीं भी सामान्य केवली का का दूध नहीं पीते।
जन्म हो सकता है। वे माता का दूध पीते
हैं।
शारीरिक विशिष्टता |. अत्यंत रूपवान
• शरीर पर 1008 लक्षण • लांछण विशेष होता है • समचतुरस्र संस्थान • केवली समुद्घात नहीं
• रूप संबंधी कोई नियम नहीं। • 1008 लक्षण संभव नहीं। • 32 लक्षण होते हैं, लांछण नहीं। • कोई भी संस्थान हो सकता है। • केवली समुद्घात हो सकता है।
दीक्षा
वे स्वयंबुद्ध होते हैं। दीक्षा से पूर्व वर्षीदान | वे प्रत्येक बुद्ध/बुद्धबोधित होते हैं। वर्षीदान देते हैं। तथा चारित्र ग्रहण करते समय ‘भंते' | संबंधी कोई नियम नहीं है। चारित्र ग्रहण का प्रयोग नहीं करते।
| करते समय भंते' शब्द का प्रयोग आवश्यक
होता है।