________________
4.
5.
6.
7.
8.
9.
तीर्थंकर : एक अनुशीलन 48
प्रत्येक घर पर रंग-बिरंगी आकर्षक ध्वजा-पताकाएँ लहराई जाती हैं एवं घर पंचरंगी मनोहर पुष्पों से सजाए जाते हैं ।
दीवारों पर गोशीर्ष-रक्त चंदनादि के छापे करवाए जाते हैं एवं चंदन कलश का स्थापन करने की आज्ञा दी जाती है।
जो वस्तुएँ नाप-तौल के हिसाब से खरीदी बेची जाती हैं, उनके नाप-तौल में वृद्धि कर दी जाती है।
राज्य में किसी भी वस्तु पर 10 दिनों तक किसी भी प्रकार का कर (टैक्स) नहीं लिया जाएगा, ऐसी उद्घोषणा की जाती है। जिस व्यक्ति को जो भी वस्तु चाहिए, वह दुकानदार से बिना मूल्य ही प्राप्त कर सकता है। दुकानदार उसका मूल्य बाद में राजभण्डार सकता है।
राज्यों के सभी कलाकार, मल्लयुद्ध मष्टियुद्ध आदि के विशेषज्ञ नाचने वाले नर्तक, चित्रकार, तालवादक इत्यादि को आज्ञा दी जाती है कि राज्य के कोने-कोने में अपनी कला का प्रदर्शन कर उत्सव का हिस्सा बने। इन्हें भी राजकोष से द्रव्यादिक सामग्री अर्पित की जाती है। जन्मोत्सव के हेतु से समूची प्रजा को भोजन, राजा द्वारा साधर्मिक वात्सल्य के रूप में कराया जाता है।
इसी प्रकार राज्य में जन्मोत्सव मनाने के लिए अन्य अनेक कार्य किए करवाए जाते हैं। चूँकि तीर्थंकर का शिशु रूप भी पुण्यात्मा पवित्रात्मा वाला होता है, राजपरिवार को किसी भी प्रकार का सूतक नहीं लगता, ऐसा वृद्धाचार्य कहते हैं।
जन्म के प्रथम दिन 'कुलस्थिति' की जाती है। तीसरे दिन बालक को 'चंद्रमा एवं सूर्य के दर्शन' कराए जाते हैं। जन्म के छठे दिन 'धर्मजागरण' कराया जाता है। ग्यारहवें दिन बर्तन, वस्त्रादि बदलकर 'अशुचि-कर्म-निवारण' होता है । एवं बारहवें दिन सम्पूर्ण राजपरिवार को आहारभोज करवाया जाता है एवं स्नान पश्चात् माता देवपूजा करती है। इसी दिन शिशु का नामकरण भी किया जाता है।
इस प्रकार दिक्कुमारियाँ 64 इन्द्र एवं प्रभु के पिता अपने-अपने तरीके से तीर्थंकर के जन्म को महोत्सव रूप में मनाते हैं।
तेजोमय नक्षत्र के वोग में जन्में तीर्थंकरों का जन्म सचमुच कल्याणक होता है। किसी सामान्य साधारण व्यक्ति के जन्म को कल्याणक नहीं कहा जाता । किन्तु तीर्थंकरों का जन्म त्रिलोक में क्षणभर की अखण्ड शान्ति प्रदान करता है। अतः देवतादि भी इसे उत्सव रूप में मनाते हैं।