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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 88889
12. विकराल व्याघ्र बनकर वज्रसम दाँतों तथा त्रिशूलसम नाखूनों से महावीर के शरीर का विदारण
किया।
13. राजा सिद्धार्थ तथा माता त्रिशला का रूप बनाया एवं करुण क्रंदन करते हुए बुलवाया कि हमें वृद्धावस्था में असहाय छोड़ कहाँ जा रहा है।
14. पैरों पर बर्तन रख दोनों पैरों के बीच अग्नि जलाई ।
15. शरीर पर पक्षियों के पिंजरे लटका दिए। वे पक्षी अपनी चोंच व पंजों से प्रहार कर क्षतविक्षत करने का प्रयास करते रहे ।
16. भयंकर आंधी चलाकर महावीर को उड़ाया व गिराया ।
17. महावीर चक्र की तरह घूमे, ऐसी चक्राकार वायु प्रवहमान की ।
18. कालचक्र चलाया। महावीर घुटने तक भूमि में धंस गए।
19. फिर. संगम देवविमान में आया तथा स्वर्ग की शोभा से लालायित कर विचलित करने की कोशिश करने लगा ।
20. अप्सरा (देवांगना ) को लाकर उपस्थित किया जो अपने हाव-भाव से विनम्र विलास से, भोग प्रार्थना करके उन्हें साधना से विचलित करने का प्रयत्न करने लगी ।
लेकिन संगम के सभी प्रयत्न निरर्थक रहे । बीस बीस भयंकर उपसर्ग देने पर भी श्रमण महावीर समत्व योग से साधना में लीन रहे । उनका मुख मध्याह्न के सूर्य की तरह चमकता रहा । छह महीने तक महावीर जहाँ भी विहार कर गए, संगम उनके पीछे-पीछे विविध उपसर्ग देने पहुँच गया जिससे प्रभु वीर की भिक्षा में, विहार में, अन्तराय पड़ा। लेकिन प्रभु वीर अविचल रहे । जब उसके सभी प्रयत्न बेकार गए, उसने हार मान ली । उसका मान स्खलित हो गया। अपने द्वारा कृत घोर पापों की क्षमायाचना करके वह लौट ही गया ।
ग्वाले का उपसर्ग
छद्मस्थावस्था के अंतिम वर्षों में प्रभु वीर छम्माणि ग्राम पधारे। संध्या काल में एक ग्वाला वहाँ आया और महावीर को अपनी बैलों की जोड़ी रक्षार्थ सौंपकर किसी कार्य हेतु गया । महावीर के मौन को उसने स्वीकृति समझ लिया। बैल चरते चरते दूर निकल गए। ग्वाला जब वापिस आया, तो बैलों को न पाकर क्रोधित हुआ । श्रमण वीर से उसने बार-बार पूछा, प्रभु मौन रहे । "अच्छा', बोलता भी नहीं है। जैसे कानों में तेल डला हो, जैसे कुछ सुनाई ही न देता हो । रुक, अभी तेरे कान खोल देता हूँ।” यह कहकर ग्वाले ने प्रभु वीर के कानों में तीक्ष्ण शलाकाएँ डाल दीं। इस असह्य वेदना को भी प्रभु सह गए। वे जानते थे कि त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में उन्होंने शय्यापालक
बुराई को दूर करने की दृष्टि से यदि आलोचना की जाए तो कोई दोष नहीं है।
उत्तराध्ययन- नियुक्ति (279)
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