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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 120
जिज्ञासा
जब तीर्थंकर विहार करते हैं, तो अष्ट मंगल की आकृतियाँ उनके आगे चलती हैं। आज भी अष्ट मंगल के द्वारा भगवान की पूजा होती है। इसके पीछे क्या रहस्य है ?
समाधान
कुछ आकृतियाँ अमंगल होती हैं, कुछ मंगल होती हैं एवं कुछ कोई भी प्रभाव नहीं छोड़तीं । अष्ट मंगल की आकृतियाँ मंगलकारी होती है। इनके पीछे कुछ रहस्य होता है।
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1. श्रीवत्स प्रभु के हृदय में रही हुई जीवमात्र के प्रति करुणा एवं अनन्त - अक्षय ज्ञानकोष उनकी छाती पर बाहर की ओर प्रकट होता है, जो विशुद्ध ज्ञान का प्रतीक
है ।
2. पूर्ण कलश श्रीफल व अन्य उत्तम द्रव्यों से परिपूर्ण कलश के समान तीर्थंकर
भी अनन्त गुणों से युक्त अपने कुल व तीनों लोकों के लिए पूर्णकलश की तरह मंगलकारी बने ।
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3. भद्रासन तीर्थंकर त्रिलोकाधिपति होते हैं। भद्र यानी कल्याण । प्रभु का आत्मिक आधिपत्य सभी विघ्नों को टालने में सक्षम है। ऐसा भद्रासन तीर्थंकर के पास रहा हुआ मंगलकारी होता है।
4. स्वस्तिक - स्वस्ति यानी अच्छा, कल्याणकारी, उत्तमोत्तम । तीर्थंकर भी सर्वत्र - सर्वदा स्वस्ति करने वाले होते हैं, कल्याणकों पर भी सभी का कल्याण करने वाले होते हैं। स्वस्तिक की आकृति परम शुभ मानी गई है।
5. नन्दावर्त नौ कोनों वाला विशेष स्वस्तिक ही नंदावर्त है। नवनिधान, नवलक्ष्मी
का भोगोपभोग होने पर भी मोक्षरूपी सुख को प्राप्त करने की प्रेरणा दे ऐसी नंदावर्त की आकृति है।
6. वर्धमान संपुट - तीर्थंकर परमात्मा सदैव वृद्धि को प्राप्त होते हैं, अध्यात्म के नए शिखरों को प्राप्त करते हैं, यश कीर्ति का भी वर्धन होता है। वर्धमान संपुट भी ऐसी ही मंगल आकृति है ।
7. मीनयुगल - तिर्यंच जीव भी कर्मों के नाश के लिए तीर्थंकर को पूज्य मानते हैं। मत्स्य युग्म बहुत ही मांगलिक मानी गई है, जो नीरोग अंग प्राप्ति का संदेश प्रतीक है।
8. दर्पण
आत्मा को निहारने के लिए तीर्थंकर ने तप, ध्यान आदि दुष्कर कृत्य किए। दर्पण मांगलिक द्रव्य अन्य को भी प्रभु आलंबन से आत्मनिरीक्षण की प्रेरणा देता है।
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