________________
18.
19.
20.
21.
22.
23.
24.
तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8853
तीर्थंकर अर
सुमिणे अरं महरिहं पासइ जणणी अरो तम्हा || अठारहवें तीर्थंकर के गर्भ में आने के बाद माता देवी ने स्वप्न में अतिसुंदर अतिविशाल रत्नमय अर (चक्र) देखा । इसलिए प्रभु का नाम रखा अर ।
तीर्थंकर मल्लि - वरसुरहिमल्लसयणमि डोहलो तेण होइ मल्लिजिणो ॥ एक बार माता प्रभाव को रात्रि में 6 ही ऋतुओं के सदा सुरभित पुष्पों की माला की शय्या पर सोने का दोहद उत्पन्न हुआ था, जो देवताओं ने पूर्ण किया। इस कारण अपनी पुत्री तीर्थंकर का नाम 'मल्लि'
रखा ।
तीर्थंकर मुनिसुव्रत - जाया जणणी जं सुव्वयत्ति मुणिसुव्वओ तम्हा ॥ प्रभु के गर्भ में आने बाद माता-पिता मुनि की भाँति श्रावक के 12 व्रतों को उत्तम रीति से पालने लगे। गर्भ के प्रभाव से माता-पिता मुनि की तरह सुन्दर व्रतों का पालन करने लगे, इसी कारण शिशु का नाम 'मुनिसुव्रत' रखा।
तीर्थंकर नम पणया पच्चतनिव्वा दंसियमित्ते जिणंमि तेण नमी ॥ एकदा शत्रु राजाओं मिथिला नगरी के किले को घेर लिया। उस समय राजा विजय निरुपाय हो गए। ज्यों ही राजाओं ने किले की अट्टालिका पर खड़ी गर्भवती रानी वप्रा को देखा, वे सभी राजा नतमस्तक हो गए। यह प्रभाव गर्भस्थ शिशु का ही है, ऐसा समझकर प्रभु का नाम उन्होंने 'नमि' रखा।
-
तीर्थंकर अरिष्ट नेमि - रिट्ठरयणं च नेमिं उप्पयमाणं तओ नेमी ॥ गर्भवती माता शिवा ने स्वप्न में अत्यंत विशाल रिष्ट-रत्नमय नेमि (चक्र) को ऊपर उठते हुए देखा था। भगवान के गर्भकाल के समय जो अरि (शत्रु) थे वे सभी नष्ट हो गए, या अरि के लिए भी इष्ट हैं, इन्हीं कारणों का विचार कर बालक का नाम अरिष्टनेमि या 'नेम' रखा।
तीर्थंकर पार्श्व सप्प सयणे जणणी तं पासइ तमसि तेण पासजिणो ॥ गर्भकाल के दौरान माता वामादेवी ने अपनी शय्या पर लेटे-लेटे गर्भ के प्रभाव से घोर अंधकार में भी सर्प को देख लियां था। नामकरण के दिन इस घटना का स्मरण करते हुए शिशु का नाम 'पार्श्व'
रखा गया।
-
तीर्थंकर वर्द्धमान वढ्इ नायकुलंति अ तेण वद्धमाणुत्ति ॥ चौबीसवें तीर्थंकर के गर्भ में आने पर सम्पूर्ण राज्य में धन-धान्य, रत्नादि वस्तुओं की वृद्धि हुई । ज्ञातृकुल के वंश की वसुधारा भी वृद्धि को प्राप्त हो रही है, ऐसा जानकर प्रभु का नाम 'वर्द्धमान' रखा। किन्तु
मनुष्य परिग्रह के निमित्त हिंसा करता है, असत्य बोलता है, चोरी करता है, मैथुन का सेवन करता है और अत्यधिक मूर्च्छा करता है। भक्तपरिज्ञा (132)
-