________________
61. लक्ष्मी
64. वृषभ
67. मत्तांग कल्पवृक्ष 70. ज्योतिरंग कल्पवृक्ष 73. चित्ररसांग कल्पवृक्ष
76. अनितांग कल्पवृक्ष
79. गरुड
82. राजभवन
85. चंद्र ग्रह
88. गुरु ग्रह
91. केतु 94. स्वर्ण सिंहासन
तीर्थंकर : एक अनुशीलन
62. सरस्वती
65. चूड़ा
68. भृतांग कल्पवृक्ष 71. दीपांग कल्पवृक्ष 74. मणितांग कल्पवृक्ष 77. सुवर्ण
80. नक्षत्रों का समूह
83. अंगारक ग्रह
86. मंगल ग्रह
97. दिव्यध्वनि
100. देवदुंदुभि 103. संपुट (वर्धमान )
106. झारी
89. शुक्र ग्रह
92. सिद्धार्थ वृक्ष
95. छत्रत्रय
98. पुष्पवृष्टि 101. दर्पण
104. श्रीवत्स
107. कलश
68
63. कामधेनु 66. महानिधियाँ
69. तुर्यांग कल्पवृक्ष 72. चित्रांग 75. गृहांग कल्पवृक्ष 78. जंबू वृक्ष
81. तारागण
84. रवि ग्रह
87. बुध ग्रह
90. राहु
93. अशोक वृक्ष
96. भामंडल
99. चामर-युगल
102. भद्रासन
105. मीनयुगल 108. नन्दाव
उपर्युक्त एक सौ आठ मुख्य लक्षण तथा तिल मसूरिकादि 900 व्यंजन यानी सामान्य लक्षण ये कुल मिलाकर तीर्थंकरों के एक हजार आठ ( 900 + 108 = 1008) शुभ लक्षण कहे गए हैं। तीर्थंकरों के वक्षस्थल पर दक्षिणावर्त से रुँवाटी के आकार का श्रीवत्स होता है। प्रभु के हृदय में परम ज्ञान रहा हुआ है, वो ज्ञान श्रीवत्स के चिह्न द्वारा बाहर आलेखित होता है।
इसी प्रकार सभी चिह्न विषयक शुभ मान्यता कही गई है।
तीर्थंकर परमात्मा का रूप सर्वोत्कृष्ट होता है। लेकिन यह पुण्यानुबंधी पुण्य ही होता है उनका रूप रागादि बढ़ाने वाला नहीं होता- 'तीर्थंकर - स्वरूपं सर्वेषां वैराग्यजनकं स्यात् न तु रागादिवर्धकं चेति' अर्थात् जहाँ अन्य जीवों का सौन्दर्य रागवर्धक होता है, वहीं तीर्थंकर परमात्मा का रूप राग को पुष्ट नहीं करना बल्कि लोगों के वैराग्यभाव को बढ़ाता है ।
दुर्विनीत व्यक्ति को सदाचार की शिक्षा नहीं देनी चाहिए। भला, उसे कङ्कण एवं पावल आदि आभूषण क्या दिए जायें, जिसके हाथ-पैर ही कटे हैं।
forafter- (6221)
-