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कल्याणक : एक परिचय
तीर्थंकर परमात्मा एक सामान्य मानव की भाँति अपनी माता के गर्भ में अवतरित होते हैं, जन्म लेते हैं एवं विशिष्ट महापुरुष की तरह दीक्षा ग्रहण कर केवलज्ञान और निर्वाण को प्राप्त करते
हैं।
तीर्थंकरों के जीवन में कुछ ऐसे क्षण होते हैं, जिनके घटने पर प्रत्येक जीव सुख का अनुभव करता है। तीर्थंकर भगवन्तों के जीवन का परम उद्देश्य होता है जीवमात्र को शाश्वत सुख प्रदान करना। ऐसे ही यत्किंचित् कल्याणकारी क्षणों को कल्याणक कहते हैं।
कहा गया है- “कल्याणं करोति इति कल्याणक :” अर्थात् सम्पूर्ण जगत् में ऊर्ध्व-मध्यअधो तीनों लोकों में सभी भव्याभव्य जीवों का कल्याण करने वाले मंगलकारी क्षण, जब सभी जीव क्षणमात्र के लिए परम सुख का अनुभव करते हैं, उसे 'कल्याणक' की संज्ञा से अभि गया है। वे कल्याणक पाँच हैं
1.
तीर्थंकरों का स्वर्ग / नरक से पृथ्वी पर माता की कुक्षि में
2.
3.
4.
5.
च्यवन (गर्भ) कल्याणक
अवतरण ।
जन्म कल्याणक
तीर्थंकर का इस पृथ्वी पर जन्म ।
दीक्षा कल्याणक - वैराग्य भाव से तीर्थंकरों का दीक्षा ग्रहण करना एवं सर्वजनों को अभयदान देना ।
तपश्चर्या पश्चात् तीर्थंकरों को तीनों लोकों का तीनों कालों का
निर्वाण कल्याणक - तीर्थंकरों का सर्वकर्मों को नष्ट कर मुक्त होना एवं लोकाग्र पर विराजित होना ।
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केवलज्ञान कल्याणक ज्ञान उत्पन्न होना।
धन और पत्नी का त्याग कर तू अनगार वृत्ति के लिए घर से निकल चुका है। अब इन वन की हुई, त्यक्त वस्तुओं का पान कदापि न कर । - उत्तराध्ययन (10/29)