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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 28
मानों हमें भूख लगी हो और हम अपनी दुकान पर बैठे हों तो यदि उस समय अच्छा ग्राहक आ जाए तो हमारी भूख-प्यास कैसे मिट जाती है? ऐसा नहीं कि भूख रही नहीं, भूख है लेकिन फिलहाल ध्येय परिवर्तित हो जाता है तो वेदना का अनुभव नहीं होता। इसी प्रकार कल्याणक पर होता है। आचार्य शीलांक के अनुसार यह उद्योत (प्रकाश) क्षणभर ही होता है परन्तु षट्पुरुषचरित्र में इसकी अवधि अन्तर्मुहर्त (एक समय से लेकर एक समय कम 48 मिनट) तक की बतायी है'स्यादन्तर्मुहूर्तं नारकादीनामपि सौख्यम्'।
अत: कल्याणकों पर सभी कल्याण का अनुभव करते हैं। साथ ही, प्रत्येक कल्याणक पर चौसठ इन्द्र अपने देव परिवार के साथ कल्याणक महोत्सव में सम्मिलित होते हैं। 64 इन्द्रों की गणना
10 भवनपति देवनिकाय के उत्तर एवं दक्षिण के 20 इन्द्र 8 व्यंतर देवनिकाय के उत्तर एवं दक्षिण के 16 इन्द्र 8 वाणव्यंतर देवनिकाय के उत्तर एवं दक्षिण के 16 इन्द्र असंख्य ज्योतिष्क के सूर्य एवं चन्द्र ये
2 इन्द्र 12 कल्पोपपन्न वैमानिक देवों के
10 इन्द्र
कुल 64 इन्द्र उपर्युक्त प्रकार से इन्द्रों की संख्या चौंसठ है। कल्पोपपन्न वैमानिक देवलोकबारह हैं। प्रथम आठ देवलोकों के एक-एक इन्द्र है किन्तु 9 एवं 10वें देवलोक का संयुक्त एक इन्द्र एवं 11वें12वें देवलोक का भी संयुक्त एक इन्द्र ही होता है। इस प्रकार दस वैमानिक इन्द्रों के नाम इस प्रकार हैं
1. सौधर्म देवलोक का सौधर्मेन्द्र (शकेन्द्र) 2. ईशान देवलोक का ईशानेन्द्र 3. सनत्कुमार देवलोक का सानत्कुमारेन्द्र 4. महेन्द्र देवलोक का माहेन्द्र 5. ब्रह्मलोक देवलोक का ब्रह्मेन्द्र 6. लान्तक देवलोक का लान्तकेन्द्र 7. महाशुक्र देवलोक का महाशुक्रेन्द्र 8. सहस्रार देवलोक का सहस्रारेन्द्र 9. आनत-प्राणत देवलोक का प्राणतेन्द्र 10. आरण अच्युत देवलोक का अच्युतेन्द्र
पदवी के अनुसार अच्युतेन्द्र सबसे ज्येष्ठ है एवं कल्याण सम्बन्धी सर्वाधिक कार्य सौधर्मेन्द्र (शकेन्द्र) करता है।
यतनापूर्वक चलने से, यतनापूर्वक बैठने से, यतनापूर्वक सोने से, यतनापूर्वक खाने से, यतनापूर्वक बोलने से पाप-कर्म का बन्ध नहीं होता।
___ - दशवकालिक (4/8)