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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 83 37
आने वाले तीर्थंकर की माता ही 'नागभवन' देखती है।
किन्तु ऐतिहासिक साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक साक्ष्यों प्रमाणों से 14 स्वप्नों का क्रम, अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होता है, क्योंकि नरक, मध्य लोक व देवलोक का कुल प्रमाण 14 राजलोक (माप) है, अतः इन 14 राजलोकों के स्वामी होने के कारण तीर्थंकर की माता 14 महा-उत्तम स्वप्न देखती है, ऐसी एक विचारधारा है।
चक्रवर्ती की माता : गर्भधारण करते समय यही 14 महास्वप्न देखती है। अन्तर इतना होता है कि तीर्थंकर की माता स्पष्ट (साफ) स्वप्न देखती है किन्तु चक्रवर्ती की माता अस्पष्ट (धुंधले) देखती है।
वासुदेव की माता : सिंह, सूर्य, कुम्भ, समुद्र, लक्ष्मी, रत्नराशि एवं अग्नि, ये 7 स्वप्न देखती हैं। - बलदेव की माता : हाथी, पद्म सरोवर, चन्द्र और वृषभ, ये 4 स्वप्न देखती हैं।
प्रतिवासुदेव की माता : हाथी, कुम्भ एवं वृषभ (या सिंह), ये 3 स्वप्न ही प्राय: देखती
माण्डलिक राजा की माता : एक स्वप्न देखती है।
विशिष्ट आत्माओं के जन्म से पूर्व उनके आगमन की पूर्व सूचना देने वाले ये शुभ स्वप्न जीव के स्वयं के पुण्यं प्रभाव से सम्बन्धित होते हैं। शक्रस्तव तथा देवोत्सव का वर्णन
तीर्थंकर का च्यवन होते ही शक्रेन्द्र (सौधर्माधिपति) का आसन चलायमान होता है। आनन्द, हर्ष एवं प्रमोद के कारण वह वैक्रिय शरीर का निर्माण करता है। वैडूर्य, अरिष्ट, अंजन आदि मणिरत्नों से जड़ित पादुका को पैरों से उतारकर एक वस्त्र उत्तरासंग करता है। तत्पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर तीर्थंकर प्रभु के सामने सात-आठ कदम जाकर विमान में रहते हुए ही बायाँ घुटना जमीन पर स्थापित कर के मस्तक को तीन बार धरती से लगाता है। तथा चौथी बार वन्दन मुद्रा में हाथ जोड़कर
और मस्तक पर अंजली लगाकर ‘शक्रस्तव' का उच्चारण करता है। एवं पूर्व दिशा की ओर अभिमुख हो कर नमस्कार करता है। तत्पश्चात् नन्दीश्वर द्वीप के 52 जिनालय में पूजा स्वरूप अष्टाह्रिका महोत्सव मनाते हैं।
सच्चा मुनि पापभीरु होता है, उसमें किसी भी तरह का ममत्व-भाव नहीं होता।
- आचारांग (1/2/6/99)