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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 19
जिज्ञासा - कई विद्वान् कहते हैं कि तीर्थंकर ऐतिहासिक पुरुष नहीं हैं, वे मात्र कोरी कल्पना हैं। क्या यह सही है ?
समाधान - तीर्थंकर कल्पना है, ऐसा कहना उत्सूत्र प्ररूपणा है जो भवों को बढ़ाने में सहायक है। पुरातात्त्विक साक्ष्यों के अभाव के कारण कई व्यक्ति ऐसा सोचते हैं परन्तु यह जैनधर्म की प्राचीनता का द्योतक है। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि तीर्थंकर ऐतिहासिक पुरुष-व्यक्तित्व थे। .
इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव केवल जैनधर्म में ही नहीं बल्कि अन्य सभ्यताओं-धर्मों में भी प्रसिद्ध हैं। ऋग्वेद में तो उन्हें पूर्वज्ञान का प्रतिपादक एवं दुःखों का नाशक बताया है। अन्य वेदों, भाष्य आदि में भी उनकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की गई है। केशों के कारण, स्थान-तिथि समानता के कारण आज भी कई लोग उन्हें शिव भगवान से जोड़ते हैं। चीनी त्रिपिटकों में भी वे 'रोकशब' (ऋषभ) के नाम से प्रसिद्ध हैं। मध्य एशिया, यूनान, फोनेशिया आदि देशों में कृषि व ज्ञानदेवता के रूप में उन्हें रेशेफ के नाम से पूजा जाता है। बेबीलोनिया के शिलालेखों से भी ज्ञात है कि स्वर्ग का, पृथ्वी का देवता 'वृषभ' था। ये सभी नाम 'ऋषभ' के ही विकृत रूप हैं जो तीर्थंकर की ऐतिहासिकता सिद्ध करते हैं।
महाभारत में विष्णु के अनेक पर्यायवाची ऐसे हैं, जो जैन तीर्थंकरों के नाम ही हैं। अनेक तीर्थंकरों को उनमें अवतार कहा गया है जो उनकी ऐतिहासिकता का स्वतः प्रमाण देता है। प्राचीन सभ्यता की सीलों, मोहरों पर ऋषभदेवजी की आकृति अंकित मिलती है। . . बौद्ध परम्परा के अंगुत्तरनिकाय में भी 'अर' का वर्णन आया है जो जैन तीर्थंकर से समीपता सिद्ध करता है। 'अजित थेर' का वर्णन भी जैन तीर्थंकर के समान ही प्रतीत होता है। तीर्थंकर अरिष्टनेमि तो वासुदेव श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे, ऐसा अनेक प्रमाणों से सिद्ध है।
तीर्थंकर सीमंधर स्वामीजी द्वारा संपर्क साधने के कई दृष्टान्त भी उपलब्ध हैं। तीर्थंकर पार्श्व तथा महावीर का प्रभाव तो सर्वव्यापक ही है। डॉ. राधाकृष्णन्, डॉ. हर्मन जैकोबी, डॉ. स्टीवेनसन, टी. डब्ल्यू राईस डेविड आदि विद्वानों ने तीर्थंकरों के अस्तित्व को एवं इस परम सत्य को निस्संदेह स्वीकार किया है।