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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 13
बंध तीर्थंकर के भाव से पूर्व तीसरे भव में ही होता है। महानिशीथ सूत्र में भी सावद्याचार्य की कथा आती है जिसमें बताया है किस प्रकार उन्होंने तीर्थंकर नाम कर्म बाँधा (अनिकाचित रूप में) किन्तु उसके आगे पुण्य दलिक इकट्ठा नहीं कर सके इसलिए उनका तीर्थंकर नाम कर्म निकाचित नहीं हो सका। अतः तीर्थंकर पद की प्राप्ति हेतु तीर्थंकर नाम कर्म को दृढ़ करना भी बहुत दुष्कर है।
क्षेमंकरगणि कृत षट्पुरुष चरित्र में ऐसा उल्लेख है कि अव्यवहार राशि में भी तीर्थंकर परमात्मा अन्य जीवों की अपेक्षा अधिक गुणवान होते हैं; व्यवहार राशि में आते हैं तो
• पृथ्वीकाय में चिन्तामणि रत्न, पद्मरांग रत्न आदि । • अप्काय में तीर्थजल, तीर्थोदक आदि ।
• तैजसकाय में यज्ञ, मंगलदीप, अग्नि आदि ।
• वायुकाय में वसंतकालीन मृदु पवन आदि ।
• वनस्पतिकाय में कल्पवृक्ष, आम्र, उत्तम चंदन, चित्राबेल आदि वृक्ष । • द्वीन्द्रिय में दक्षिणावर्त शंख, शालिग्राम, शुक्तिका आदि ।
• तिर्यंचों में उत्तम हाथी / अश्व आदि उत्तम स्थानों को प्राप्त करते हैं।
जिज्ञासा : तीर्थंकर नामकर्म, गोत्र व लब्धि में क्या अन्तर है ?
समाधान : तीर्थंकर नाम एवं तीर्थंकर गोत्र, कर्मों से सम्बंधित होते हैं जो जीव को तीर्थंकरत्व देने में नाम, रंग, रूप, कुल आदि प्रदान करते हैं, जो उत्तमोत्तम होते हैं। किन्तु लब्धि का सम्बन्ध तीर्थंकर के पुण्य से होता है, जो तीर्थंकर की सर्वव्यापकता एवं यश-प्रभावादि दर्शाता है। अतः सभी तीर्थंकरों का नाम कर्म व गोत्र कर्म समान होता है, किन्तु लब्धि समान नहीं होती । स्थानांग सूत्र में 'तित्थगरणामगोत्ते कम्मे' कहकर तीर्थंकर नाम गोत्र कर्म, ऐसा लिखा गया है । अतः तीर्थंकरत्व के संदर्भ में नाम कर्म और गोत्र कर्म का गहरा सम्बन्ध है ।
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जिज्ञासा : क्या तीर्थंकर की सत्ता वाला मिथ्यात्व गुणस्थान में आता है ? समाधान : तीर्थंकर प्रकृति का बंध चौथे गुणस्थानक से लेकर आठवें गुणस्थानक के छठे भाग तक किसी-किसी सम्यक्त्वी जीव को होता है। तीर्थंकरनाम की सत्ता के रहते हुए जीव मिथ्यादृष्टि नहीं हो सकता। एक विशेष कारण से उसे मिथ्यात्व में आना पड़ सकता है किन्तु मिथ्यात्व में वह अन्तर्मुहूर्त से अधिक नहीं ठहरता । विशेष कारण
यदि जीव नरकायु का बंध पहले करे, बाद में वेदक सम्यग्दृष्टि होकर तीर्थंकर नामकर्म बाँधे तो वह मरण काल आने पर मिथ्यादृष्टि हो जाता है किन्तु अन्तर्मुहूर्त के अंदर ही वापिस सम्यक्त्व में स्थिर हो जाता है।