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भीतर हैं तुम्हारे सदा-सदा से मुरली के स्वर ।
कृष्ण की बांसुरी के सुरों को सुनने के लिए तुम ठेठ प्रयाग और वृंदावन की ओर जा रहे हो। तुम अपने को सुनना शुरू करो। कृष्ण की बांसुरी के सुर तो बहती हुई नदियों के निनाद में, उनकी कल-कल
में हैं ।
व्यक्ति की आत्म-चेतना, आत्म-सत्य, उसका अपना स्वामी कहीं और नहीं, स्वयं उसके भीतर है। मुश्किल यह है कि बाह्य विषयों से तादात्म्य के कारण वह चेतना का स्रोत, उसकी ज्योति व्यक्ति को दिखाई नहीं देती । व्यक्ति का तादात्म्य इतना गहरा है कि वह जो चैतन्य नहीं है, उसे चैतन्य मान रहा है और चैतन्य का कोई अर्थ और उपयोग नहीं रहा है। तादात्म्य के कारण शरीर चैतन्य नहीं होते हुए भी ऐसा लगता है कि वह चैतन्य है ।
व्यक्ति एक बात समझ ले कि मुक्ति का मार्ग तादात्म्य को तोड़ना है, तो उसने संसार के सारे अध्यात्म-शास्त्रों का सार निचोड़ लिया है। हर एक अध्यात्म-शास्त्र और अध्यात्म-पुरुष का एक ही सूत्र है - तादात्म्य को तोड़ डालो। यह तादात्म्य स्वयं मानव-निर्मित है । हमने ही किसी को पत्नी, किसी को पति, किसी को माता-पिता व पुत्र बनाया। हम मानते हैं कि यह मेरा है पर यथार्थ में वह हमारा है नहीं । सब योगानुयोग है।
मैं किसी के घर मेहमान था । दोपहर में विश्राम कर रहा था कि कुछ बच्चों को आपस में लड़ते देखा । उनकी आवाज सुनकर मैं उनके पास गया और पूछा कि क्यों लड़ रहे हो ? एक बच्चे ने कहा, 'हम इसलिए लड़ रहे हैं कि इसने मेरे स्कूटर को अपना स्कूटर कह दिया । ' दूसरे बच्चे ने कहा, 'नहीं, इसने मेरे स्कूटर को अपना स्कूटर कह दिया ।' मैं चौंका और कहा, 'तुम तो इतने छोटे हो, फिर तुम्हारे स्कूटर ?”
बच्चे हंस पड़े और कहा, 'आप भी खूब बने। हम तो उन स्कूटरों की बात कर रहे हैं, जो रास्ते पर चल रहे हैं । हम तो खेल
सो परम महारस चाखै / १४
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