________________
इसलिए जब तक स्वयं में इतने आत्म-विश्वस्त नहीं हो जाते कि मैंने उपलब्ध कर लिया है, तब तक किसी और को प्रेरणा मत दो क्योंकि वह आगे तो बढ़ आएगा पर जब तुम स्वयं अंधकार में बैठे हो तो उसको प्रकाश कैसे दे पाओगे? अंधा अंधे को मार्ग नहीं सुझा सकता। ____ आनंदघन के सामने भी ऐसी ही समस्या आई और उन्होंने गुरु की तलाश शुरू कर दी। गुरु को खोजते चले गए। उन्हें दुनिया में इतने गुरु मिले कि जिसकी कोई सीमा नहीं। जो चोटी उखड़ा दे, कपड़े बदलवा दे, वह गुरु तो एक ही होता है पर ज्ञान देने वाले, सीख देने वाले गुरु तो कदम-कदम पर मिल जाएंगे।
किसी बच्चे को भी बच्चा मत समझो क्योंकि उस बच्चे से भी तुम्हें महान सीख मिल सकती है, कोई महान सबक मिल सकता है। आदमी का यह अज्ञान और मूर्छा है कि वह बच्चे को बच्चा समझता है। बच्चा कोई सलाह देना चाहता है तो आदमी लेना नहीं चाहता और कहता कि तू बच्चा है, मुझे क्या देगा? बड़ों ने अब तक यही सबसे बड़ी चूक की है। बड़े सोचते हैं कि यह बच्चा मुझे कुछ भी सीख नहीं दे सकता। बालक में भी ज्ञान की सम्भावना है। बालक में भी तुम-सी ही सत्ता है। बालक में नचिकेता की आत्मा है।
सबक तो कहीं से भी मिल सकता है अगर सीखने की ललक हो और सीखने व जानने की आंखें हमारे पास हों। पेड़ की हर पत्ती पर वेदों के मंत्र लिखे हुए मिल जाएंगे। चिड़िया के शोरगुल में भी कुरआन की आयतें मिल जाएंगी। जिस बच्चे को हम तुच्छ समझते हैं, वह तुच्छ नहीं है। वह भी हमें बहुत बड़ी सीख दे सकता है। शैशव तो परमात्मा के राज्य में प्रवेश पाने का सुनहरा द्वार है।
एक तेरह-चौदह वर्ष का बच्चा बोला कि मेरी दादीजी को बोलने की तमीज नहीं है। मेरी दादी सत्तर वर्ष की हो गई हैं, फिर भी मुंह से गालियाँ निकालती हैं। एक चौदह वर्ष के बच्चे को इतनी समझ है कि उसकी दादी जो गालियां निकालती है, वे ठीक नहीं हैं। दादी सत्तर वर्ष की होने पर भी यह नहीं समझ पाई कि उसे गालियां निकालनी चाहिए या नहीं।
समझ का क्या, जब जागे तभी सवेरा। किसी से भी हमें सीख
जगत् गुरु मेरा/५८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org