Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 69
________________ _ सम्मला का संगीत सुरीला समता का संगीत सुरीला मेरे प्रिय आत्मन्! मनुष्य का मन अद्भुत है। संसार की विचित्रताओं में से एक है, अजब पहेली है यह। उलझ जाए तो पहेली, सुलझ जाए तो सहेली। यह मन ही है, जो मनुष्य के लिए स्वर्ग का निर्माण करता है और उसके लिए नरक का मार्ग भी खोलता है। सुख के फूल भी मन खिलाता है और दुःख के कांटे भी मन ही उगाता है। प्रकाश और अंधकार, बंधन और मुक्ति, राग और विराग, सबका आधार-सूत्र मनुष्य का मन ही है। हवा के जिस झोंके से दीपक बुझता है, उसी से दावानल सुलगता है। आग से भरी जिस मशाल से घरों और जंगलों का अंधकार समाप्त होता है, उसी से बस्तियों में आग भी लगाई जा सकती है। जिस जुबान से गीत गाए जा सकते हैं, उसी जुबान से गालियां भी निकलती हैं। जिस दृष्टि से सौन्दर्य का रसास्वादन किया जा सकता है, वही दुष्कृत्य के लिए उतावली हो उठती है। इन सबके पीछे कोई प्रेरक तत्व है, तो वह मनुष्य का अपना मन है। सो परम महारस चाखै/६६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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