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मार्ग क्या है, अंधकार से बाहर होने पर प्रकाश का क्या अनुभव है, मन में ऐसे सवाल उठना शुभ संकेत है। यही तो वे सवाल हैं, यही तो वह जिज्ञासा है, यही तो वह कौतुहल है, जिसकी मुंडेर पर प्रकाश के दीये जलेंगे। इन्हीं डंडों पर मशालें जलेंगी। इन्हीं प्रश्नों से समाधान के सूत्र जन्मेंगे। यह शुभ है। जिनके मन में ऐसा बोध जगा है, अंधकार का बोध, अज्ञान का ज्ञान जगा है, धन्यभाग! वे रूपान्तरण की पहली सीढ़ी चढ़ चुके। वे बदलना शुरू हुए। आलोक की पहली किरण उनके अनुभव में उतरी।
जीवन का विकास, चेतनागत विकास ज्ञान से होता है पर उस ज्ञान से नहीं, जिसे शब्दों और सूचनाओं के रूप में, जानकारियों के रूप में मन में संग्रहित करते हैं। जिसे आप ज्ञान कहते हैं, वह वास्तव में ज्ञान नहीं, अपने जन्म-जन्म के अज्ञान को आवृत्त करने का आधार मात्र है। उससे अज्ञान दिखाई नहीं देगा। तुम पंडित हो जाओगे, औरों के साथ शास्त्रार्थ करोगे, तर्क करोगे, तर्क में दूसरे को पछाड़ने में रस लोगे पर इससे अज्ञान नहीं मिटेगा। ज्ञान की बातें होंगी, अज्ञान भीतर दबा रहेगा। वह अज्ञान वक्त-बे-वक्त तुम्हें कचोटेगा। अज्ञान तुम्हें सालेगा। सच तो यह है कि ज्ञानी को जितना उसका अपना अज्ञान का अंधकार कचोटता और सालता है, उतना वाद-विवाद में मिलने वाली पराजय तकलीफ नहीं देती। ___मनुष्य का अज्ञान गहरा है। भीतर की धरती को खोदो, तो पता चलेगा कि अज्ञान किस पाताल तक फैला है। बाह्य ज्ञान स्वीकार्य है। ज्ञान स्वीकार करो पर अपने अज्ञान को पहचानने के लिए। जब भी कोई वास्तव में ज्ञानी होगा, ज्ञान उसके भीतर क्रांति घटित करेगा। बाहर का ज्ञान भीतर के अज्ञान को जगायेगा। जीवन में यह एक महान घटना समझना, एक शुभ घटना कि ज्ञान ने अज्ञान को जगाया। ज्ञान ने अज्ञान को पहचाना।
अज्ञान का बोध ठीक वैसा ही है जैसे अंधकार का बोध । अज्ञान के बोध से ज्ञान की शुरुआत है और अंधकार के बोध से आलोक की। दोनों से बाहर निकलना है। अपने आभामंडल को प्रकट करना है।
अज्ञान अंधकार है, अंधकार अज्ञान है। अज्ञान से बाहर आना
सो परम महारस चाखै/१०१
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