Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 114
________________ को उपलब्ध करने की, अन्तस् के आकाश में मौन उड़ान भरने की उत्कंठा जगी है, ध्यान और अध्यात्म का मार्ग उन्हीं को निहाल कर पाएगा । अभीप्सा ही न हो, तो सद्गुरु को खोजेगा कौन? सद्गुरु को सद्गुरु के रूप में समझेगा कौन? सद्गुरु के चरणों में अपनी सत्ता को समर्पित कौन करेगा? फिर तो बस, संत मिल गये, चलते-चलते धोक लगा दी और चलते बने। बादल का बरसना, तभी तो सार्थक होगा, जब चातक के चित्त में जल-बूंद को पाने की हूक हो । अध्यात्म का पहला चरण है- मुक्ति की महत्त्वाकांक्षा । दूसरा चरण है- मुक्ति के मार्ग पर आरूढ़ होने के लिए सद्गुरु का स्नेहसहयोग, सद्गुरु का कृपा-प्रसाद । तीसरा चरण, आखिरी पड़ाव हैरसमयता, डुबकी, खुमारी, निमग्नता, अहोसमर्पण, अहोप्रतीक्षा । फिर तो मंजिल है, अमृत वर्षण है, अन्तस् के आकाश में मुक्त उन्मुक्त विहार है। अब जब अभीप्सा जगी है, तो आगे की यात्रा भी होगी । कबीर के जीवन की एक प्यारी सी घटना है। कबीर के मन में मुक्ति की एक गहरी तड़प, अभीप्सा थी । उसी अभीप्सा के कारण वे सद्गुरु को ढूंढते रहे । जाति का जुलाहा, कौन आदमी कबीर को अपना शिष्य बनाए । भले ही एकलव्य अपने बलबूते पर महान धनुर्धर हो गया पर उसे शिष्य रूप में न तो कृपाचार्य ने और न ही द्रोणाचार्य ने स्वीकार किया । वह जाति का ब्राह्मण या क्षत्रिय नहीं था । जो स्थिति एकलव्य की थी, वही स्थिति कबीर की थी। अब कबीर को आत्मज्ञान या नाम-दान कौन करे ? समय का दुष्प्रभाव । अगर वे सीधे गुरु के पास जाकर कहते कि मुझे शिष्य बना लें, तो कोई तैयार होता ? कबीर गंगा के तट पर बनी सीढ़ियों पर जाकर सो गए क्योंकि बगैर सद्गुरु के चरणों की रज मिले शिष्य का निस्तार नहीं होता । सद्गुरु की चरण-रज पाने के लिए ही कबीर आधी रात को जाकर सीढ़ियों पर सो गए। उन्हें आशा थी कि महान् ज्ञानी रामानन्द इसी राह से नदी स्नान के लिए गुजरेंगे। रात्रि का अंधकार ! रामानंद को सीढ़ियों पर कोई भी व्यक्ति आज तक सोया हुआ नहीं मिला था। रामानंद सीढ़ियों की ओर बढ़े और गंगा में डुबकी लगाने के लिए जैसे ही पांव बढ़ाया, वे चौंके । पिया बिन झूरूं / ११४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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